कविता

शब्दों की सीमा रेखा

ये जो शब्दों की सीमा रेखा है,
बिल्कुल वेसे जेसे ये मन!
कोई तट नहीं बना इसके लिये,
विस्तृत, अथाह, अपार !
जेसे दोस्ती की तरह पावन है,
न कोई शर्त, न कोई बंधन !
कुछ रिश्ते जो अंजान लगते हैं,
अपने बेहद खास लगते हैं!
जुड़ जाते हैं ये कुछ ऐसे,
मन की सीमा रेखा हो जैसे!
दूर क्षितिज़ तक फ़ैली,
दिल के रिश्तों के जैसी पावन !
जुड़ जाते हैं जब मन के तार !
किसी से अटूट! एक बार !
ये जो शब्दों की सीमा रेखा है,
बिल्कुल वेसे जेसे ये मन!

...राधा श्रोत्रिय "आशा"

राधा श्रोत्रिय 'आशा'

जन्म स्थान - ग्वालियर शिक्षा - एम.ए.राजनीती शास्त्र, एम.फिल -राजनीती शास्त्र जिवाजी विश्वविध्यालय ग्वालियर निवास स्थान - आ १५- अंकित परिसर,राजहर्ष कोलोनी, कटियार मार्केट,कोलार रोड भोपाल मोबाइल नो. ७८७९२६०६१२ सर्वप्रथमप्रकाशित रचना..रिश्तों की डोर (चलते-चलते) । स्त्री, धूप का टुकडा , दैनिक जनपथ हरियाणा । ..प्रेम -पत्र.-दैनिक अवध लखनऊ । "माँ" - साहित्य समीर दस्तक वार्षिकांक। जन संवेदना पत्रिका हैवानियत का खेल,आशियाना, करुनावती साहित्य धारा ,में प्रकाशित कविता - नया सबेरा. मेघ तुम कब आओगे,इंतजार. तीसरी जंग,साप्ताहिक । १५ जून से नवसंचार समाचार .कॉम. में नियमित । "आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह " भोपाल के तत्वावधान में साहित्यिक चर्चा कार्यक्रम में कविता पाठ " नज़रों की ओस," "एक नारी की सीमा रेखा"

2 thoughts on “शब्दों की सीमा रेखा

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छी कविता .

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