शब्दों की सीमा रेखा
ये जो शब्दों की सीमा रेखा है, बिल्कुल वेसे जेसे ये मन! कोई तट नहीं बना इसके लिये, विस्तृत, अथाह, अपार ! जेसे दोस्ती की तरह पावन है, न कोई शर्त, न कोई बंधन ! कुछ रिश्ते जो अंजान लगते हैं, अपने बेहद खास लगते हैं! जुड़ जाते हैं ये कुछ ऐसे, मन की सीमा रेखा हो जैसे! दूर क्षितिज़ तक फ़ैली, दिल के रिश्तों के जैसी पावन ! जुड़ जाते हैं जब मन के तार ! किसी से अटूट! एक बार ! ये जो शब्दों की सीमा रेखा है, बिल्कुल वेसे जेसे ये मन! ...राधा श्रोत्रिय "आशा"
बढ़िया !
बहुत अच्छी कविता .