कविता

पेट के लिए करते हैं

न चाहते हुए भी,
वह वही काम करते हैं।
मालूम है उन्हें कि,
वह खूबसूरत नहीं।
साहब! वह तो सिर्फ,
पेट के लिए संवरते है।
सभी पेट के लिए करते हैं॥
भूख बहुत है आदमी की,
लेकिन इक रोटी नसीब नहीं।
चाहकर भी कुछ न कर पाए,
क्योंकि कभी पेट उनका
भरा ही नहीं।
सभी पेट के लिए करते हैं॥

One thought on “पेट के लिए करते हैं

  • Mukesh Kumar Sinha

    behtareen

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