पागल
पागल़़…!!!
यही कहता है जमाना ।
हटकर लीक से जो हूँ
कर नहीं पाता
कदम-ताल जमाने संग
होता नहीं सहन
अन्याय…अत्याचार
हो किसी संग भी ।
बिना डरे अंजाम से
जताता हूँ विरोध
भ्रष्टाचार के विरुद्ध
पर पाता हूँ स्वयं को…अल्पसंख्यक !!!
तभी तो संख्या बहुल
कह पाते हैं-
‘अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता’
समझते हैं … पागल !!!
बहुत उम्दा
सादर आभार आदरणीय विजय कुमार सिंघल जी
आशा पाण्डेय ओझा जी आपकी सुन्दर टिप्पणी के लिये सादर नमन
वाह वाह !
सादर आभार आदरणीय विजय कुमार सिंघल जी