फूलों का राजा गुलाब
उनका सौन्दर्य अप्रतिम है
वे देवताओं को प्रिय हैं
कवि भी उनके सौन्दर्य से वशीभूत होकर लिखते हैं कविता
वे प्रेम के प्रतिक हैं
प्रेमियों के लिए प्रेम के इज़हार का है सर्वोत्त्म तरिका
इसलिए भेंट स्वरूप देते हैं वे एक दुसरे को
रुठे को मनाना हो तो
गुलाब से नायाब और कोई नहीं तोहफा
बाजार में उंचे दामों में बिकते हैं
जबकी
निषेचीत होकर
नही बनते अन्न
ना ही भूख मिटा पाते
आंखों को सुकून
मन को शांति देने के सिवाय
बीज, मिट्टी से कायम नहीं करते
जमीनी रिश्ता
उनकी कोमल पंखुड़ियां
बिना कुछ दिए
खिलकर झड़ जाने को अभिश्प्त हैं
तो पूरी कविता पढ़ने के बाद
सिर्फ सुन्दरता के आधार पर कविता के शीर्षक को
सही मान लेंगे
एक बार सोचना जरूरी है !!!!!
— भावना सिन्हा
निराला जी ने कभी लिखा था- ‘अबे सुन बे गुलाब, गर पाई तूने ये खुशबू-रंगो-आब, खून चूसा खाद का तूने अशिष्ट, डाल पर इतर रहा है कैपीटलिस्ट.’
बहुत ख़ूब !
kapas ke phool se roti bhi milti hai ,rojgaar bhi milta hai ,vstr bante hai ,manushy me aatmvishvas jaagata hai ,…gulab ka phool saundry ka pratik hai ,kalpana aur prem ka pratik hai to ,kapas ka phool ..jivan ke katu yatharth ko sangharsh ke dvara sahaj banane ka pratik hai ..v v nice poem ..bhawana ji ..
बहुत ख़ूब !