कविता

मेरी अंखियाँ

हैं किसी अपने की तलाश में
इधर-उधर ताकतीं हैं
लोग तो कई हैं पास में
फिर भी खुद को तनहा पाती हैं
ऐसी हैं मेरी अंखियाँ

गुमसुम सी वे रहती हैं
दर्द-ए-दिल वे सहती हैं
तनहा हो गयीं हैं बिल्कुल
मंद-मंद वे रोती हैं
ऐसी हैं मेरी अंखियाँ

सवालों की जडियां उनके पास
जवाब नहीं किसी के पास
अपने ही सवालों में वे उलझीं रहती
चाहकर भी वे कुछ न कहती
ऐसी हैं मेरी अंखियाँ

-विकाश सक्सेना