मेरे हाइकु
पीली सरसो
लट चमके श्वेत
बर्फ से ढकी
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रूपसी नारी
सताई जाती जग
सौंदर्य सजा
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बसंत ऋतु
कोहरे में लिपटा
बर्फ टुकड़ा
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जीवन माला
सांस मनके चले
तन नश्वर
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भीतर झाँको
बंद नयन कर
सुहानी झाँकी
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लोभ तनय
तनया मरवाई
पाप की हद
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स्वतंत्र देश
औरत पराधीन
स्व के घर में
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भ्रमर लोभी
रसपान सुमन
बगिया डोले
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दुआ के लिए
लोभ का संवरण
कदापि नही
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सश्क्त है नारी
वतन बलिहारी
व्यक्तित्व भारी
— शान्ति पुरोहित
अच्छे हाइकु
धन्यवाद विजय कुमार भाई जी