इत्तेफ़ाक या फिर सूखन कोई
अक्सर दबे पाँव
वो भी चला आता है
घर मेरे
जिससे कभी
मुलाकात ही ना हुई।
आता समझा नहीं
इत्तेफ़ाक कहूँ इसे
या फिर सूखन कोई।
अक्सर दबे पाँव
वो भी चला आता है
घर मेरे
जिससे कभी
मुलाकात ही ना हुई।
आता समझा नहीं
इत्तेफ़ाक कहूँ इसे
या फिर सूखन कोई।