‘मुहँदेखाई’
नई बहू के गृहप्रवेश करते ही घर में जमा हुई औरतों के बीच कानाफूसी शुरू हो गई|
“बडे पन्डित बने फिरते हैं, इन्हें पता ही नहीं था !!”
“क्या नहीं पता !” आँखे गोल करती हुई रामदीन काकी बोलीं |
“यही की, कि राहुकाल में नई बहू को गृहप्रवेश नहीं कराते हैं|”
“हाँ री! सुना है, बड़ा अशुभ होता है|”
“…ईश्वर ही मालिक है अब।”
इन्हीं कानाफूसियों के बीच सारे रीतिरिवाज बीत गए …| दादी भी मुँह फुलाये कोने में बैठी थी ।
बहू ने पैर छूकर आशीर्वाद माँगा ही था कि वह बादल सी फट पड़ी ..”राहुकाल में प्रवेश हुआ है छोरी, भगवान करें, आगे सब अच्छा ही हो।”
बहू हँसते हुए बोली- “यह राहुकाल क्या होता है दादी, आप बस हँसते रहा करिए, ये हँसी का काल है।” कहके जोर से खिलखिला पड़ी |
दादी उसकी निरछल हँसी सुन मुँह बिचकाकर कही ‘आजकल की बहुए भी|”
वह आँखे फाड़े हाथ को गाल पे लगाकर चौकन्नी हों मूर्ति सी टीवी के आगे बैठ गयीं | अचानक पाकिस्तान का नाम सुनते ही उनके कान घर में उठते शोर-शराबे से हटकर टीवी-स्क्रीन से चिपक गये | टीवी की खबर कानों से टकराई कि पन्द्रह साल से जेल में बंद रामकृपाल के साथ दो और बुजुर्ग बंदियों को छोड़ा जा रहा है।
नाम सुनते ही पलंग से फुटबाल की तरह उछली और अलमारी के पास जा पहुँची | “बहू-बेटा, सुनते हो! अरे जल्दी आओ ! तेरे पिता जी जिन्दाsss हैं ..।” पति द्वारा दिया गया नौलखा हार हाथो में लिए बोलीं -“तेरी बहूरिया कहाँ है, बुला उसे! उसकी ‘मुँहदेखाई’ दे दूँ । अरे उसका प्रवेश बड़ा शुभ है |” …सविता
अन्धविश्वास पर चोट करने वाली प्रशंसनीय रचना। बधाई।
आभार आपका