गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : लफ्ज़ की मोहताज है कहाँ चाहत

चश्मे गिरयाँ में गुहर बन के ठहर जाती है,

वही हंसी जो कभी लब पे बिखर जाती है।

किसी भी लफ्ज़ की मोहताज है कहाँ चाहत,

वो तो आँखों से रग-ए- जाँ में उतर जाती है।

दिन की चौखट पे अगर धूप जला जाती है,

चांदनी शब की मुंडेरों पेबिखर जाती है।

इश्क़ का नाम अगर मौज पे लिख दे कोई,

बे-ख़तर हो के वो तूफां से गुज़र जाती हैं ।

तेज़ तूफान में इक वादा निभाने के लिए,

अपने वो कच्चे घड़े ले के उतर जाती है।

ढूंढ़ती फिरती है दीवाने को सहरा सहरा,

क्यों मोहब्बत ये बियाबान में मर जाती है।

“प्रेम” की बस्ती अंधेरों की मुख़ालिफ़ है सदा,

नूर होता है जहाँ तक भी नज़र जाती है!
1चश्मे गिरयाँ=रोने वाला, 2 गुहर= मोती, 3 रग-ए-जाँ = जान की नस, 4 मौज= लहर, 5 सहरा=रेगिस्तान, 6 मुख़ालिफ़=विरोधी

प्रेम लता शर्मा

नाम :- प्रेम लता शर्मा पिता:–स्व. डॉ. दौलत राम "साबिर" पानीपती माता :- वीरां वाली शर्मा जन्म :- 28 दिसम्बर 1947 जन्म स्थान :- लुधियाना (पंजाब) शिक्षा :-एम ए संगीत, फिज़िकल एजुकेशन परिचय :-प्रेमलता जी का जन्म दिसम्बर 1947 बंटवारे के बाद लुधियाना के ब्राह्मण परिवार मैं हुआ। 1970 से 1986 तक शिक्षा विभाग में विभिन्न स्कूलों और कॉलेज में पढ़ाया उसके बाद यु.एस.ए. चले गएँ वहां आई.बी.एम. से रिटायर्ड हैं । छोटी सी उम्र में माता-पिता के साये से वंचित रही हैं । पिता जी अजीम शायर व भाई सुदर्शन पानीपती हिंदी लेखक थें । अपने पिता जी की गजलों को संग्रह कर उनकी रचनाओं की एक पुस्तक ‘हसरतों का गुबार’ प्रकाशित कर चुकी हैं ।भारत से दूर रहने पर भी साहित्य के प्रति लगन रोम रोम में बसा है।

One thought on “ग़ज़ल : लफ्ज़ की मोहताज है कहाँ चाहत

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    प्रेम लता बहन , कविता अति सुन्दर लगी , आप ने १९४७ में जनम लिया लेकिन मैं ने तो १९४३ में जनम लिया , वोह पार्टीशन की बहुत सी बातें अभी भी याद हैं , और हाँ फगवारा से लुधिआना दूर नहीं है.

Comments are closed.