बसंत से…
दरख्तों में
निकल आए हरे हरे पत्ते
नग्न शाखों ने
पहन लिए हैं
मखमली लत्ते (कपड़े)
बसंत—-
सहसा रखा तुमने जो कदम
आरंभ हुआ
नया जीवन——–
निकल आए हरे हरे पत्ते
नग्न शाखों ने
पहन लिए हैं
मखमली लत्ते (कपड़े)
बसंत—-
सहसा रखा तुमने जो कदम
आरंभ हुआ
नया जीवन——–
कोमल कोमल वृंतों में
देखो कैसे
झुम रहे
नाच रहे
कत्थक की नर्तकी सरीखे
फूल पीले पीले
ज़मी के अंदर
पता नहीं
कहां छुपा था
इतना सारा गाढा रंग
कि तुम्हारे
छुअन भर से
रातों रात
फूलों के टोकरी में
बदल गई धरती
बसंत तुम
ले आए अपने मंजूषा में
उल्लास की नवकिरण
उजली खिली धूप की तरह
चारो सू
बिखरी है उमंग
विरह की वेदना
ह्रदय में दबाए
बंद आंखों में
सपने संजोए
गुनगुना रही गोरी
राग बहार बसंत
अलि के गुंजन
कोयल की कू कू से
प्रमुदित है
धरा का कण कण
बसंत से——
मांगती हूं
मुट्ठी भर उर्जा और उत्साह
ताकी
बचा सकूं
अधरों की हंसी
आने वाले निदाघ दिनो में !!
— भावना सिन्हा
bahut khub
अच्छी कविता !
shukriya
बसंत उर्जा की सुंदर रचना