ग़ज़ल : शबनम
ख़ुशबू से कह दो फैले यहाँ इख़्तिसार में,
शहज़ादीमहव-ए-ख़्वाबहै टूटे मज़ार में।
शबनम भी आंसुओ की तरह गुल पे छा गई,
कोई उदास कर गया फ़स्ल-ए-बहार में।
ग़म हाथ बांधे सर को झुकाए हैं हर तरफ,
ये कैसी सल्तनत है मेरे इक़तदार में।
अब कोई चश्म-ए-तर का सबब पूछता नहीं,
पथरा गई है आँख मेरी इन्तिज़ार में।
क्या क्या लिखूँ ग़ज़ल में क़लम सोचने लगा,
वो रत जगे कहाँ हैं भला अब शुमार में।
इक जिन्स-ए-ख़्वाब था सो उसे भी किया है सल्ब,
कुछ भी नहीं बचा है मेरे इख्तियार में ।
धड़का है, वाहिमा है, तजस्सुस है, क्या है ये,
इक पल को दिल ये रहता नहीं है क़रार में।
वो सब हिसाब लेने ख़िज़ाँ आई “प्रेम” से,
जितने फ़रेब उसने दिये थे बहार में।
1इख़्तिसार=ख़ुलासा, 2महव-ए-ख़्वाब= सपनों में खोना, 3मज़ार= कब्र, 4शबनम= ओस, 5फ़स्ल-ए-बहार= बहार का मौसम, 6सल्तनत= राज्य, 7इक़तदार= अधिकार, 8 चश्म-ए-तर= आंसू भरी आँखें, 9 शुमार= शामिल, 10 सबब= कारण, 11जिन्स= चीज़, सामग्री, 12 सल्ब= विनाश, 13 इख्तियार= अधिकार, 14 धड़का= डर,15वाहिमा= वहम, 16तजस्सुस= तलाश, 17 क़रार = चैन, 18ख़िज़ाँ=पतझड़
बढ़िया ग़ज़ल । इसमें उर्दू फ़ारसी के कठिन शब्दों की भरमार है । यह अच्छी बात है कि उनके हिंदी अर्थ भी दिये गये हैं, लेकिन यदि सरल शब्दों का उपयोग होता तो बेहतर होता।