चार बोतल वोडका ….
जिंदगी की एक बोतल
हिस्से आती है हर जान के
मिन्नतें जितनी भी मांगो
बड़ा निष्पक्ष है भगवान ये
जब भी देखा भरी सी लगती थी
होश आया तो होश उड़ गए
कौन कब कितनी पी गया
खाली बोतल लगती है कबाड़ सी
मैंने भी जाम बहुत पिये उसके नाम के
कुछ हवा हो गयी खुली बोतल से
कुछ गिर पड़ी उस ऊछाल से
जब जिंदगी में आये थे सैलाब से
खाली बोतल लिये घूमता हूँ
जिंदा मुर्दों की तरहां
क्यों लुटा दी झूठे रिश्तों पर
पैगम्बर की तरहां
जिंदगी की एक बोतल
हिस्से आती है हर जान के
चार बोतल वोडका
कहाँ मिलती है भगवान से
………..मोहन सेठी ‘इंतज़ार’
वाह वाह ! बोतलों के माध्यम से जिन्दगी की सचाई को खूबसूरती से बयान किया है आपने.
जी धन्यवाद