बाल साहित्य

बिल्ली मौसी की शादी

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मटकू चूहा सरपट भागा,
उसने थोड़ा केक चुराया।
बिल्ली मौसी ने शादी में,
मटकू को था नहीं बुलाया॥

खट्टी मीठी खुशबू आती,
मटकू के मन को ललचाती।
बात पते की उसने सोची,
मौसी के घर करते चोरी॥

देखा महफिल जमी हुई थी,
मौसी दुल्हन बनी हुई थी।
भटकू हाथी नाच रहा था
चुटकी बंदरिया सजी हुई थी॥

चंपू हिरन ने गाना गाया,
निक्की कोयल को नहीं भाया।
बुद्धि भालू भी था रंग में,
नाक पे ऐनक था सजाया॥

चतुर बंदर पहन कर टोपी,
बाँट रहा था सबको रोटी।
केक छुपा रखा था उसने,
मटकू की हुई नीयत खोटी॥

ढोलू गधे ने ढ़ोल बजाया,
चतुर बंदर के मन भाया।
केक छोड़ के लगा नाचने,
मटकू ने अब मौका पाया॥

मटकू ने जो केक उठाया,
मिट्ठू तोते ने शोर मचाया।
सबने घेर लिया मटकू को,
डर कर के मटकू घबराया॥

बुद्धी भालू भी तभी आया,
उसने मटकू को समझाया।
बोला मटकू नहीं करते चोरी,
बड़े प्यार से उसे बताया॥

देखो बच्चों सीख लो जान,
बुरे काम का बुरा परिणाम।
जग में करो अच्छा काम,
मिलता सबको अच्छा परिणाम॥

One thought on “बिल्ली मौसी की शादी

  • विजय कुमार सिंघल

    रोचक बाल कविता.

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