विदाई
प्रिया, अपने भाई की बड़ी दीदी थी | वो भी मात्र पंद्रह साल की बस ! परिस्थिति ने प्रिया को बड़ा बना दिया | उसका बचपन अपने भाई की देख-भाल और घर की सारी जिम्मेदारी उठाने मे कहीं खो गया | दिव्या प्रिया की माँ, असमय इस दुनिया से सबको छोड़ कर चली गयी |
दिव्या बहुत ही नेक -दिल इंसान थी | दुसरो का भला करने की उसमे गजब की आदत थी | जैसे -दिव्या का जन्म परोपकार के लिए ही हुआ हो | अतिश्योक्ति ना होगी अगर कहूँ, कि परदुख कातरता उसमे कूट -कूट कर भरी हुई थी | पड़ोस मे या परिवार मे किसी को दिव्या की जरूरत हो वो तुरंत उनके पास अपना सब काम छोडकर पहुँच जाती | किसी की शादी हो या कोई बीमार हो उनकी सेवा करना उनके काम आना यही जैसे उसके जीने का लक्ष्य था |सिर्फ तन से ही नहीं वो धन भी खर्च करती थी | कई गरीब लडकियों की शादी मे उसने पैसा लगाया है |
दिव्या अपनी गृहस्थी मे पति ,सास और दो बच्चो के साथ बहुत ही खुश थी | रेलवे मे काउंटर बाबू की नौकरी करती थी |पति किशोर कॉलेज लेक्चरार थे | दस बजे अपने ऑ|फिस जाने से पहले किशोर और दोनों बच्चो को भेजने की तैयारी मे लगी रहती | रोज सुबह घर मे उनकी जरूरत की चीजो के लिए दिव्या को इधर से उधर भागना पड़ता है, पर वो उफ़ तक नहीं करती है | उसे तो जैसे ये सब करने मे आनंद की अनुभूति होती है | और क्यों ना हो, एक औरत की ख़ुशी अपने परिवार को खुश देखने मे ही है |
सुबह की पहली किरण के साथ ही दिव्या बिस्तर छोड़ काम मे जुट जाती थी | ‘मम्मी मेरा बैग तैयार है न |’ प्रिया बाथरूम से ही चिल्लाती है | ‘ मम्मी मेरा लंच -बॉक्स रेडी हुआ कि नहीं |, पंकज ने जुते की लेस बांधते हुए कहा |’
‘हाँ , हाँ सब तैयार है बस तुम आकर नाश्ता कर लो तो तुम्हारे पापा को भी नाश्ता दे दूं | दिव्या ने कहा |, सब को भेजने से पहले ही मां जी को चाय देनी होती है | सबकी जरुरत पूरी करते -करते वो खुद भी तैयार हो जाती थी | गजब की फुर्ती थी दिव्या मे उसकी सास रोज ही कहती है |
धीरे -धीरे समय बीत रहा था ,बच्चो का स्कूल ख़त्म होकर अब कॉलेज शुरू होने वाला था | बच्चे अगले साल कौनसी कॉलेज जायेंगे ,घर मे रोज यही बाते चल रही है | एक दिन सुबह दिव्या के सीने मे असहनीय दर्द होने लगा | किशोर घर पर ही थे जल्दी से गाडी निकाली और दिव्या को शहर की सबसे बड़ी हार्ट होस्पिटल मे ले गया | डॉ, ने तुरंत ही एडमिट करके इलाज शुरू किया | करीब एक महिना तक इलाज चला | आज दिव्या को डिस्चार्ज किया जाना था बच्चे खुश थे उनकी मम्मी इतने दिनों के बाद ठीक होकर घर आ रही है | किशोर की माँ ने बहु को खूब आशीर्वाद दिया और ठीक होकर वापस घर और बच्चे को सँभालने को कहा |
होना तो कुछ और ही था घर आने के चार दिन बाद ही दिव्या बच्चो को रोता छोड़ कर इस दुनिया से चली गयी | किशोर बच्चो के सामने रो भी नहीं सकता| बच्चे दादी से बार -बार पूछ रहे है कि हमने एसा क्या पाप किया कि हमारी माँ हमे अकेला छोड़ कर चली गयी | बच्चो का रुदन किसी से भी नहीं देखा जा रहा था | दिव्या को लाल जोड़ा पहनाया गया , लाल बिंदी और किशोर से मांग भरवाकर सुहागिन के वेश मे अंतिम सस्कार के लिए ले जाया गया |
समय बीतता गया बच्चे अब बड़े हो गये घर मे कोई औरत हो इसलिए बेटे की शादी पहले की गयी | प्रिया की शादी भी तय हो गयी है एक माह बाद प्रिया की शादी होनी है घर मे अभी से तैयारिया शुरू हो गयी | आज प्रिया की मेहँदी है | कल हल्दी और महिला संगीत रखा है | सब काम हो रहे है बच्चो को अपनी माँ आज कुछ ज्यादा ही याद आ रही है | प्रिया उदास अपने काम मे लगी है | महमानों की भारी भीड़ मे प्रिय अकेला महसूस कर रही है |अपनी माँ को ढूंड रही है | माँ के वयवहार के कारण बहुत लोग शादी मे प्रिया को आशीर्वाद देने के लिए आये है | मेंहमानों का तो जैसे ताँता लग गया | सब अपनी और से गिफ्ट भी लेकर आये है|किशोर को प्रिया को देने के लिए कुछ भी लाना नहीं पडा सब सामान की व्यवस्था मिलने वाले लोगो ने कर दी थी अब प्रिया को लग रहा है कि मेरी मम्मी कितनी महान थी | जब दिव्या गयी तब प्रिया बहुत छोटी थी कुछ समझ पाने की हालत मे नहीं थी | सब लोग उनको जैसे आज सच्ची श्रदांजली देने आये है मुझ बिन माँ की बेटी को अपना प्यार और आशीर्वाद देने की जैसे होड़ मच गयी है |
आखिर प्रिया की विदाई का टाइम भी आ गया| सब ने प्रिया की विदाई को जैसे विदाई महोत्सव बना दिया | एक -एक कर सब गले मिल रहे थे | अंत मे प्रिया की दादी ने उसकी सास को कहा कि ‘ये बिन माँ की बच्ची है इसे आप बहुत प्यार से रखना |, दुल्हे राजा और उनके परिवार के लोग प्रिया को डोली मे बिठाकर अपने घर ले गये | पापा और दादी को अकेला छोड़ कर आज प्रिया अपने ससुराल चली गयी सब की आँखे नम है |
अच्छी कहानी. पर यह शायद पहले भी पढ़ी है. देखता हूँ.
हाँ, बहिन जी, यह ३ सितम्बर को इसी वेबसाइट पर लग चुकी है.