कविता

पर्यावरण

वॄक्षों से धरती सजाओ,
पर्यावरण स्वच्छ बनाओ।
इधर-उधर मत कूड़ा फैंको,
धरती का कण-कण महकाओ।
पोलीथीन से नाता तोड़ो.
जूट के बैग सब अपनाओ।
वाहन कम -से-कम चलाओ.
धुएं से सबको बचाओ।
आओ सब मिल पेड़ लगाएँ
जग प्रदूषण मुक्त बनाएँ
अपनी प्यारी धरती का
पर्यावरण स्वच्छ बनाएँ।

सुरेखा शर्मा

सुरेखा शर्मा

सुरेखा शर्मा(पूर्व हिन्दी/संस्कृत विभाग) एम.ए.बी.एड.(हिन्दी साहित्य) ६३९/१०-ए सेक्टर गुडगाँव-१२२००१. email. [email protected]

3 thoughts on “पर्यावरण

  • स्वर्णा साहा

    पर्यावरण संरक्षण व संवर्द्धन की ओर दिशा-निर्देश देती बहुत सुंदर कविता |

  • Man Mohan Kumar Arya

    मैं श्री विजय जी के शब्दों से पूरी तरह से सहमत हूँ। बहुत अच्छी कविता है। हार्दिक बधाई। एक पंक्ति जो कविता में नही कह पा रहा हूँ यह जोड़ना चाहता हूँ कि “घर घर प्रातः सायं यज्ञ-अग्निहोत्र करके, वायु-वर्षाजल-अन्न को सुगन्धित-पौष्टिक बनायें।” धृष्टता के लिए क्षमा।

  • विजय कुमार सिंघल

    इस कविता की प्रत्येक पंक्ति पर्यावरण संरक्षण अभियान का नारा बन सकती है ।

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