शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य के जीवन व व्यक्तित्व का समग्र विकास है: राजनाथ सिंह
गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार का 112 हवां वार्षिकोत्ेसव हर्षोल्लास से आज 6 फरवरी, 2015 को सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम मध्यान्ह 2 बजे से आरम्भ हुआ। मंच पर ही यज्ञ किया गया जिसमें गुरूकुल के कुलाधिपति डा. राम प्रकाश, कुलपति प्रो. सुरेन्द्र कुमार, एमडीएच के प्रमुख महाशय धर्मपाल जी सहित अनेक लोग सम्मिलित हुए। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भारत के गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह जी थे। बीजेपी सासंद श्री रमेश पोखरियाल व हरिद्वार से विधायक मदन कौशिक भी उनके साथ आये थे। कार्याक्रम के आरम्भ में दीपप्रज्जवन हुआ। गुरूकुल की छात्रओं ने मनोहर स्वर में सरस्वती वन्दना का गान किया। इसके पश्चात विश्वविद्यालय के कुलपति महोदय द्वारा विगत वर्षों की रिर्पाेट प्रस्तुत की गई। उन्होंने पिछले कुछ वर्षों की उपलब्धियां गिनाईं और कहा कि कुछ समय से गुरूकुल के साथ अन्याय किया जा रहा है। गुरूकुल पहले “ए” श्रेणी में रखा गया था परन्तु पिछले दिनों इसे “सी” श्रेणी में कर दिया गया जिससे गुरुकुल को मिलने वाली ग्रान्ट व आर्थिक सहायता में भारी कटौती कर दी गई। इसका दुष्प्रभाव गुरूकुल के कार्यों पर पड़ रहा है। भाषण में गृहमनत्री जी को लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की तरह कर्मठ व लौह पुरुष बताकर उनकी प्रशंसा की गई। इसके बाद स्नातकों को स्वर्ण पदक एवं उपधि वितरण का कार्य सम्पन्न हुआ। इए अवसर पर माननीय गृहमंत्री श्री राजनाथसिंह को गुरूकुल की उच्चतम मानोपाधि विद्यामार्तण्ड से भी सम्मानित किया गया।
दीक्षान्त भाषण देते हुए भारत के गृहमन्त्री श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि मैं आज इस असाधारण परम्परा से जुड़े हुए स्थान पर खड़ा हूं। इस स्थान पर अपनी उपस्थिति को मैं अपना सौभाग्य मानता हूं। गुरूकुल ने अपने स्थापना काल से अनेक सुप्रसिद्ध वैदिक विद्वानों को पैदा किया है। उन्होंने कहा कि मैं विद्यामार्तण्ड मानोपाधि के योग्य नहीं हूं परन्तु मैं इसकी अवहेलना भी नहीं कर सकता हूं। उन्होंने कहा कि मैं अपने जीवन की यथार्थ स्थिति को अच्छी तरह से जानता हूं। उन्होंने कहा कि किसी मनुष्य का कद उसके पद से नहीं अपितु उसके उत्तम व श्रेष्ठ कार्यों से बड़ा होता है। मुझे यह सुनकर वेदना हुई कि गुरूकुल को “सी” श्रेणी में डाल दिया गया है। उन्होंने आश्वासन दिया कि मैं अपनी पूरी ताकत लगाकर गुरूकुल को उसका उचित सम्मान दिलाऊगां। विद्यार्थियों को सम्बोधित कर उन्होंने कहा कि आपने गुरूकुल में अध्ययन करके ज्ञान प्राप्त किया है। अब आपको दीक्षा दी जा रही है। आपकी शिक्षा-दीक्षा क्या है? देश में इस प्रश्न पर विचार किया जाता रहा है। उन्होंने कहा कि दीक्षा संस्कार का प्रभावी माध्यम है। ज्ञान अपने आप में पर्याप्त नहीं है। उन्होंने युवकों की अराजक गतिविधियों की चर्चा की और कहा कि जो युवक अराजकता के कार्य करते हैं, उन्होंने अच्छी पढ़ाई की हुई है। ज्ञान जब अच्छे संस्कारों से जुड़ जाता है तो यह लाभकारी बन जाता है। जब ज्ञान का संस्कारों से सम्बन्ध टूट जाता है तो यह विनाशकारी बन जाता है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि स्नातक विद्यार्थी गुरूकुल में प्राप्त शिक्षा एवं संस्कारों का अपने सारे जीवन भर अनुसरण करेंगे। उन्होंने आगे कहा कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था खराब हो गई थी। इस कारण उन्हें प्रायः सभी मुख्य मदों में देश के बजट में कटौती की परन्तु उन्होंने शिक्षा के बजट में कोई कटौती नहीं की। उन्होंने इसका कारण बताया कि शिक्षा ही वह कारण है जिससे देश पुनः अपने पैरो पर खड़ हो सकता है।
विद्वान वक्ता एवं राजनेता श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि शिक्षा का पाश्चात्यिकरण हो गया है। महात्मा गांधी ने वर्तमान शिक्षा के स्वरूप के प्रति अपनी चिन्ता व्यक्त की थी। उनका कहना था कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली से देश वैसा नहीं बन सकता जैसा कि हम चाहते हैं। माननीय गृहमन्त्री जी ने कहा कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली में अनेक विसंगतियां है। भारत शिक्षा के क्षेत्र में संसार में सर्वोपरि है। उन्होंने इसका उदाहरण देते हुए भारत के अनेक विश्व प्रसिद्ध लोगों के नाम लिए जिनमें आर्यभट्ट, चरक, सुश्रुत तथा पाणिनी आदि सम्मिलित थे। उन्होंने सभागार में भारी जन समूह से पूछा कि इन लोगों को संसार में कौन नहीं जानता? इसी क्रम में उन्होंने कहा कि जो ज्ञान व विज्ञान भारत के पास है वह आज भी अन्य देशों के पास नहीं है। उन्होंने एक गणितीय समीकरण की चर्चा कर कहा कि यह सीमरण भारतीय मनीषियों की ही देन है और हमारे प्राचीन शास्त्रों में इसका वर्णन है। श्री राजनाथ सिंह जी ने Principle of Uncertainity के सिद्धान्त की चर्चा कर कहा कि इसके आविष्कारक ने अपने मित्र को बताया था कि उसे इसकी प्रेरणा भारत के मनीषियों के ज्ञान के आधार पर ही मिली थी। इस घटना का उल्लेख उनके उस मित्र ने अपनी पुस्तक में किया है। उन्होंने विदेशी दार्शनिक श्री शोपनहार का उल्लेख कर बताया कि वह भारत के उपनिषदीय ज्ञान को मानव मस्तिष्क का सर्वोत्तम चमत्कार मानता था। उन्होंने कहा कि भारत के बच्चों को इस आध्यात्मिक ज्ञान की विरासत से दूर किया जा रहा है, इसे मैं विडम्बना मानता हूं। उन्होंने कहा कि हमारे देश का एक अपठित पण्डित विगत अनेक शताब्दियों से अपने पंचागों को देख कर 100 वर्ष पीछे और 100 वर्ष आगे होने वाले सूर्य व चन्द्र ग्रहण के समय की माह, तिथि, घंटा, मिनट व सेकेण्ड्स में ठीक-ठीक बता सकता है। उन्होंने कहा कि आज विज्ञान ने भी भारत के प्राचीन मनीषियों के इस कथन की पुष्टि कर दी है कि यह सृष्टि आज से लगभग 1.96 अरब वर्ष पहले उत्पन्न हुई थी। उन्होंने यह बताया कि वैज्ञानिक इस सम्बन्ध में सृष्टि को 1 से चार अरब वर्ष पुराना बताते हैं। करतल ध्वनि के बीच उन्होंने कहा कि एक दिन संसार के सभी वैज्ञानिकों को हमारी मान्यता को सत्य मानना पड़ेगा।
भारत के गृहमन्त्री श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत में अद्भुद् ज्ञान व विज्ञान है। इस प्राच्य विद्या की उन्नति व संरक्षण पर हमें ध्यान देना चाहिये। उन्होंने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य के जीवन व व्यक्तित्व का समग्र विकास है। भौतिक व आध्यात्मिक उन्नति हमारे जीवन की आवश्यकता है। उन्होंने उन्होनं कहा कि केवल भौतिक उन्नति से स्थाई सुख प्राप्त नहीं होता। आगे उन्होंने बताया कि मन्दिर-मस्जिद-गिरिजा पूजा की पद्धतियां हो सकती है परन्तु यह पूर्ण आध्यात्मिकता नहीं है। विद्वान वक्ता ने आगे कहा कि भावना मन से पैदा होती है। उन्होंने कहा कि जितना बड़ा किसी व्यक्ति का मन होता है, उतना बड़ा ही वह व्यक्ति माना जाता है। मन के बड़ा होने पर मनुष्य के सुख में उसी अनुपात में वृद्धि होती है। कुशल राजनीतिज्ञ श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि छोटे मन का व्यक्ति कभी आध्यात्मिकता का धनी नहीं हो सकता। भारत के प्राचीन मनीषियों ने संसार को “वसुधैव कुटुम्बकम्” का सन्देश दिया। आगे उन्होंने कहा कि संसार के लोगों को श्रेष्ठ बनाने वाला “कृण्वन्तों विश्वर्मायम्” का सन्देश भी ईश्वर ने वेद में और भारत के ऋषिें-मुनियों द्वारा ही संसार को दिया गया है। विद्वान वक्ता ने कहा कि व्यक्ति को धन सहित अध्यात्म की भी आवश्यकता है। इन दोनों की उपलब्धि होने पर जीवन सफल होता है।
श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि उन्होंने अनेक विश्वविद्यालयों के दीक्षान्त समारोह आदि आयोजनों में भाग लिया है परन्तु यह पहला विश्वविद्यालय है जहां संस्कृत भाषा में अभिनन्दन पत्र पढ़ा गया। आगे उन्होंने कहा कि संस्कृत विश्व की सभी भाषाओं की मां है। इसकी पुष्टि दूसरे देश के विद्वानों व मनीषियों ने भी की है। उन्होंने कहा कि जो विषेषतायें संस्कृत भाषा में है वह विश्व की अन्य भाषाओं में नहीं है। दीक्षा भाषण की समाप्ति से पूर्व उन्होंने सभी उपाधि प्राप्त करने वाले छात्र-छात्राओं-स्नातकों को शुभकामनायें और बधाई दी तथा गुरूकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के अध्किारों का धन्यवाद किया।
मुख्य अतिथि के भाषण के बाद कुलाधिपति श्री डा. राम प्रकाश ने श्री राजनाथ सिंह के गुणों की प्रशंसा की और उनको अपनी ओर व समस्त गुरूकुल के अधिकारियों, शिक्षकों की ओर से धन्यवाद किया। रारष्ट्रीय गान के साथ दीक्षान्त समारोह का समापन हुआ।
–मनमोहन कुमार आर्य