कविता

होली गीत “हवा चली होली में”

नर-नारी का तन-मन महके हवा चले जब होली में,

झूमें नाचें खुशी मनाएँ हवा चले जब होली में।

पीली सरसों खिले खेत में, हवा चले जब होली में।

नई-नई कोंपल खिल जाएँ, हवा चले जब होली में।

भीनी-भीनी गंध बिखेरें, फूल खिलें जब होली में।                          

रूठे जन को प्रिय मनाएँ, गले लगा कर होली में।

हँस-हँस कर सब नाचें गाएँ, धूम मचाएँ होली में।

बैर -भाव सब द्वेष मिटा कर, गले लगाओ होली में,

रंग -गुलाल, अबीर लगाओ हवा चले जब होली में।                          

रूखा-सूखा रहे ना कोई, इस बार की होली में।

सुरेखा शर्मा

सुरेखा शर्मा

सुरेखा शर्मा(पूर्व हिन्दी/संस्कृत विभाग) एम.ए.बी.एड.(हिन्दी साहित्य) ६३९/१०-ए सेक्टर गुडगाँव-१२२००१. email. [email protected]

One thought on “होली गीत “हवा चली होली में”

  • विजय कुमार सिंघल

    होली में अभी देर है. लेकिन फागुन शुरू हो गया है, इसलिए ठीक है. वैसे गीत अच्छा है.

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