विविध

नई विधा- प्रेम पत्र

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शायद तुम्हें सही ना लगे , तुमने सोचा न हो  लेकिन खुद को अब न रोक पाऊंगा । उस एक घड़ी का कुछ ऐसा असर हुआ की अब चेतना ही तुम हो । तुम्हारी रिक्ति सोच कर ही कांप जाता हूँ । आँखें बंद हो ,खुली हों -स्वप्न पटल पे बस तुम ही अंकित हो । हर रोज तुम्हारी जुल्फें घटा बन, आँखें समन्दर और यादें उसकी लहर बन जीवन को अद्भुत सा उत्साह देती हैं । जब कभी उस अनमोल से दिन को याद करता हूँ ,रोमांचित हो जाता हूँ । वो तुम्हारा बिना कुछ कहे ,आँखों की हया को बिन होठों के सहारे मेरे दिल की गहराइयों में उतार देना , आज उसी पल को संजोकर जिन्दगी को जीने का आधार बनाया हूँ । मुझे मालूम था शायद वो सब तुम मेरे लिए नहीं कर रही थी ,मगर दिल को कौन समझा पाया है ।इस दुनिया की भीड़ में मेरी जरूरत को तुम कैसे भांप गयी ये शायद मेरी रूह को भी नहीं पता है । तुम मेरे लिए और कुछ हो या न हो ये मैं नहीं जानता मगर तुम वो सम्बल हो जिस के न होने पर मैं बिखरने से बच नहीं सकता । जब कभी तुम से दो एक बातें कर लेता हूँ तो मानो मेरी आत्मा परमात्मा से बात की हो और संतुष्ट हो जाती है । मेरे लिए तुम अँधेरे में उजाले की प्राप्ति हो ।  सुनो ……

लौ एक दिए की काफी होगी
जो तू मेरे इस
काले अंधियारे जीवन जग में
शहचारनी जुगनू बन कर साथी होगी ।
इच्छा ना होगी
उन पावस प्रेम प्रपंची हिरणो की
चूँकि , साथ मेरे तू होगी
लक्ष्मी पुंज प्रकाशित किरणों की
हो शर्मिंदा दे प्रकाश
दिनकर मुझको
ऐसी उसकी रचना होगी ।

कहने को क्या नहीं है । कहूँ तो क्या क्या कहूँ । तुम्हें शायद मेरे समर्पण की आहों के जरिये पता हो , एक एक शाम ,एक एक सुबह में तूम ही प्रेरित करती हो मुझे नव गति को । सूरज के ढलते गोले और उदित होते चन्द्रमा व उसकी चांदनी के शीतलता में तुम ही अनुभव हो । विराट गगन की थाल में धुंधले से काले बदलों में तुम्हारी जुल्फ़ों की आभा ,समन्दर के अथाह गहराइयों के समान तुम्हारी आखें और उसमें उल्लसित सी यादों की लहरों का आभास । पंछियों के लौटते झुंडों के साथ तुम्हारे मिलने की आस । साक्षात् माँ शारदे की वीणा से झंकृत ध्वनियों को सम्बल प्रदान करते तुम्हारे अधर । समस्त ब्रह्मांड को गति प्रदान करती सी तुम्हारी निश्छल सी मुस्कान । ये सब कुछ तो है कहने को ।

पढ़ते पढ़ते उपन्यासों की नायिकाओं में तुम्हारा आजाना ।
हर कविता ,शायरी ,हर गजल के आधार में तुम्हारा दैवीय रूप । हर घड़ी हर पल तुम्हे कविता की पक्तियों में छिपा लेने की अनाधिकार सी धृष्ट चेष्टा । गीत की हर लाइनों में तुम्हें ढाल लेने का कुछ कुछ सफल सा प्रयास । हर एक एहसास को जुबाँ देती मेरी आहों के दहकते अंगारों पे खून के हर कतरे को अपनी बेबसी का गवाह बना लिखी गयी हर एक कहानी में तेरी तलाश ।

शायद अब भी याद कर सकती हो तुम
उस बगीचे का घना सा नीम का पेड़
जिसकी गुददियों में तो थी तीतास
मगर छाया में ममत्व की मिठास
तीस पर भी तुम्हारा साथ
एक दूजे के हाथ में हाथ
बालों में फिरती उँगलियाँ
कुछ खट्टी मीठी चुगलियाँ
कुछ अटखेलियाँ
और सब से उपर
वो तेरी निश्छल सी मुस्कान
जो खंडित शिलाओं में भी फूंक दे जान ।

इन सब का एक एक एहसास । लिखने को तो बहुत कुछ है । इन निगोड़े कलम और पन्नों में वो विस्तार कहाँ जो मेरे समर्पण को शब्द का सम्बल दे सकें ।

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जितना कहा वो मेरी भावनावों का अल्पांश भी नहीं ।
आज अपने सारे वजूद की हकीकत को बटोर तुम से कहने का साहस किया । कुछ फ़िकर नहीं जो तुम इसका उत्तर ना दो मगर अपने आप को इश्क के कटघरे से बाहर कर लिया -जो बाद में वो कहें की हमने इजहार ही न किया ।

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आप एक महत्वाकांक्षी लडकी हो । मैं तुम्हारे जूनून और जज्बे का सम्मान करता हूँ । तुम्हें मेरी बातें गलत लग सकती हैं । अगर तुम्हें गलत लगे तो आप स्वतंत्र हो ।
मुझे मेरे हाल पे छोड़ कर ।

please दिल की बात को आँखों के रस्ते दिल में न उतारना सही पर जुबां पर मत लाना कभी ।
हाँ ,इसे जो कुछ समझना पर किसी से जिकर न करना कभी ।
मुझे कभी गलत मत समझना। मेरे दिल ने जो आवाज बनाई उसे तुम तक पहुचाने वाला

तुम्हारा
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लेखक
कवि सौरभ सिंह परमार
9651115249

सौरभ सिंह

नाम :- कवि सौरभ सिंह पिता :- श्री मनोज सिंह माता :- श्रीमती सविता सिंह पता :- ग्राम रूद्रपुर ,पोस्ट सिंघवारा ,ब्लाक महराजगंज ,पिन 276139 ,जिला आजमगढ़ शिक्षा:- बारहवीं -जवाहर नवोदय विद्यालय जीयनपुर आजमगढ़ (उ0 प्र0) स्नातक:- इलहाबाद विश्व विद्यालय ।

2 thoughts on “नई विधा- प्रेम पत्र

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    प्रेम पत्र अच्छा लगा.

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह !

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