~~~काँटो भरी राह ~~~
टिहरी में आये जलजले में सब कुछ तबाह हो गया था । कौशल का मनोबल फिर भी ना टुटा था । रह-रह उसके पिता की बात उसके दिमाक में गूंजती थी कि विद्यादान सबसे बड़ा दान है ! और इस दान को प्राप्त करके ही सब आगे बढ़ेंगे। दान देने बाले को भी अभूतपूर्व संतोष का धन प्राप्त होता है ।इस दान में वह सुख है जो कभी कहीं भी नहीं मिल सकता ।
बस फिर क्या था उसने अपने गाँव के सारे बच्चों को इकठ्ठा किया और लग गया विद्या का दान देने एक टूटे फूटे खंडहर में ।
खंडहर भले ही खंडहर ही था ,पर बच्चों के मष्तिष्क खण्डहर होने से मुक्त हो गये थे | कौशल अपनी मेहनत को अँकुरित, पल्लवित , पुष्पित देख फूले न समा रहा था ।
आज कई साल बाद खँडहर को पिता के नाम से ज्ञान के मंदिर रूप में स्थापित देख कौशल के आँखों से आँसू श्रधान्जली के रूप में लुढ़क गए । पिता को आभार प्रकट करता हुआ बोला -“ये सब आपकी शिक्षा का ही प्रताप है ‘पिता जी’ जो मैं काँटो भरी राह में फूल उगा पाया । ” Savita Mishra