दिल्ली की जनता ने राजनैतिक दलों को दिया ऐतिहासिक संकेत
आखिरकार दिल्ली की जनता का जनादेश 10 फरवरी 2015 को पूरी दुनिया के सामने आ ही गया। दिल्ली की जनता ने बता दिया कि वह अब कितनी परिपक्व हो चुकी है। 49 दिनों की केजरी सरकार गिरने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली के लिए जो रणनीतियां बार-बार बदली यह उसी का नतीजा है। लोकसभा चुनावों के बाद एक के बाद एक सफलता प्राप्त कर रहे प्रधानमंत्री मोदी को यह जोर का झटका लगा है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की आंखें भी समय रहते ही खुल जानी चाहिये। कहा जाता है कि अभी तक अमित शाह ने अभी तक कोई भी चुनाव नहीं हारा था लेकिन दिल्ली में वह दिन भी देखने को मिल गया। प्रधानमंत्री मोदी ने सबका साथ सबका विकास का नारा दिया है तथा वह अभी भी चल रहा है। उसी नारे के बलबूते पर दिल्ली में केजरीवाल का विकास हो गया। केजरीवाल का इतना अधिक विकास हो गया कि दिल्ली में भाजपा की आक्सीजन तो बची रही लेकिन कांग्रेस की आक्सीजन तो पूरी तरह से समाप्त हो चुकी है। दिल्ली में अब कांग्रेस का न तो कोई सांसद है और न ही कोई विधायक। दिल्ली देश का ऐसा पहला राज्य बन गया है जो पूर्ण रूप से कांग्रेस मुक्त हो चुका है। 1951 के बाद यह कांग्रेस की पहली शर्मनाक पराजय है जहां पर उसका कोई भी विधायक नहीं पहुचा। वही भाजपा 1984 के बाद पहली बार इतनी बुरी तरह से पाराजित हुई है।
आज पूरे देश ही नहीं अपितु पूरे विश्व मीडिया में भाजपा की हार पर चर्चा हो रही है। विदेशों में सभी समाचार पत्र पत्रिकायें केजरीवाल की अविश्वसनीय जीत पर विशेष संपादकीय लिख रही हैं। सोशल मीडिया में पहली बार मोदी-अमित शाह की जोड़ी का मजाक बनाया जा रहा है। अब देशभर में चाय-पान की दुकानों पर केजरी की जीत की चर्चा हो रही है। दिल्ली की जनता ने पहली बार मोदी विरोधियों व सेकुलर ताकतों को ऐतिहासिक जश्न मनाने का मौका दे दिया है। जिन राज्यों में चुनाव होने वाला हैं वहां पर मोदी विरोधी पूरी ताकत से भाजपा को रोकने के लिए नये सिरे से रोकने की तैयारी करने लग गये हैं वहीं दूसरी ओर भाजपा की बढ़त व ग्राफ को तगड़ा झटका लग गया है।
आज से पंद्रह महीने पहले जब केजरीवाल दिल्ली की सत्ता छोड़कर भागे थे तब उसके बाद भाजपा के पास जोड़-तोड से सरकार बनाने के कई अवसर आये, लेकिन भाजपा ने वह रास्ता पसंद नहीं किया। नतीजा सबके सामने हैं। उसके बाद दिल्ली विधानसभा के चुनावों को कराने में भी बड़ी देर कर दी। फिर भाजपा नेतृत्व ने कई गलत कदम भी उठाने शुरू कर दिये। दिल्ली में अपने पुराने कार्यकर्ताओं पर अविश्वास किया, उन पर शंका जाहिर की तथा उन्हें खुलेआम गुटबाज कहा गया। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के अहंकार के कारण आज दिल्ली की जनता ने उन्हें अपनी पुरानी दो सीटों की समय रहते याद दिला दी है। साथ ही यह भी जात दिया है बाहर से आयातित नेता हमेशा आपकी नैया नहीं पार लगवा सकते हैं। अंतिम क्षणों में किरण बेदी का मुख्यमंत्री पद का दावेदार बनाकर भाजपा ने अपने सर्वनाश को स्वतः आमंत्रित कर लिया है। ऊपर से कृष्णा तीरथ जैसी कांग्रेसी नेताओं को भी पार्टी में शामिल किया गया जिनका जनाधार पहले से ही खिसक चुका था।
दिल्ली में भाजपा ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा करने में काफी देर कर दी। भाजपा की मुख्यमंत्री पद की दावेदार किरण बेदी ने आप नेता केजरीवाल से टी वी पर बहस करने से इंकार कर दिया। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का भारत दौरा व उसके बाद ओबामा की ओर से भारत की धार्मिक असहिष्णुता सम्बंधी बयानबाजी से भाजपा विरोधी लहर चल गयी। कांग्रेसी युवराज राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी के दस लाख के सूट को मुददा बना दिया जिसमें वह तो पूरी तरह से ही साफ हो गये। भाजपा में किरण बेदी के खिलाफ पूरी तरह से बगावत हो चुकी थी जिसे अमित शाह समझ नहीं सके। भाजपा दिल्ली चुनावों में पूरी तरह से घबराहट में दिख रही थी यह उसकी रणनीति में साफ दिखलाई पड़ रहा था।
दिल्ली में भाजपा की हार के कई कारण रहे जिसका आत्ममंथन भाजपा को करना ही होगा सबसे बड़ी बात यह है कि अपने पुराने व वरिष्ठ कार्यकर्ताओं पर लगातार विश्वास रखना उनसे संपर्क और संवाद बनाये रखना। सरकारें बनने के बाद भाजपा व संघ परिवार में सबसे बड़ी कमी कमजोरी यही आ जाती है कि वे सत्ता के मद में अंधे हो जाते है मदमस्त हो जाते हैं। सभी वरिष्ठ नेता व कार्यकर्ता अपने परम्परागत सहयोगियों को भूल जाते है। उनकी इच्छाओं को पूछा नहीं जाता सम्मान नहीं दिया जाता। दिल्ली में मुख्यमंत्री पद के पूर्व दावेदार डा. हर्षवर्धन स्वास्थ्य के क्षेत्र में बहुत अच्छा काम कर रहे थे लेकिन उन्हें वहां से हटा दिया गया फिर उन्हें मुख्यमंत्री पद का दावेदार न बनाकर पीछे कर दिया गया। जिसका परिणाम यह हुआ कि दिल्ली की जनता भाजपा नेतृत्व से बहुत नाराज हो गयी थी।
दिल्ली में भाजपा की पराजय के कई सियासी कारण भी रहे। जिसमें कांग्रेस सहित सभी गैर भाजपा दलों का आप को खुला समर्थन देना व मुस्लिमों का भाजपा को हराने के लिए एकजुटता का अभूतपूर्व प्रदर्शन करना। देश की जनता अब यह भलीभांति समझ रही है कि दिल्ली में भाजपा को हराने के लिए यह कांग्रेस और अन्य धर्मनिरपेक्ष ताकतों की साजिश थी। कांग्रेस ने अपने को समाप्त करते हुए भाजपा को मात देने में ही सफलता प्राप्त की है। लेकिन भाजपा विरोधी आज तो जश्न मना रहे हैं लेकिन आने वाले समय में उनका यह जश्न कहीं उन पर ही भारी न पड़ जाये। अभी प्रधानमंत्री मोदी व भाजपा अध्यक्ष के पास नये सिरे से विचार करने के लिए पर्याप्त समय है। समय रहते उन्हें जनता का मूड पता चल गया। नीतिश कुमार सोच रहे हैं कि अब बिहार व यूपी में भी वही होगा जो दिल्ली में हुआ। दिल्ली की जनता ने स्थिरता, विकास, वंशवाद, जातिवाद की राजनीति के खिलाफ एक नया प्रयोग किया है। बिहार की जनता को एक नया रास्ता दिखा दिया है। वहां की जनता भी लालू-नीतिश की जोड़ी से छुटकारा पाना चाहती है। ज्यादा जश्न न मनायें नीतिश कुमार। बार -बार कांठ की हांडी नहीं चढ़ती है वह भी हवाबाजी न करें।
रही बात केजरीवाल की उनके लिए तो नई चुनौतियों का समय अब प्रारम्भ हो रहा है तथा दिल्ली की जनता से किये गये अपने सभी वायदों को पूरा करके दिखायें। अब दिल्ली की जनता को सस्ती बिजली, पानी दें तथा भ्रष्टाचार मुक्त आम आदमी के लिए पारदर्शी सरकार दें। प्रधानमंत्री मोदी के साथ कदम से कदम मिलाकर चलें और कालाधन वापस लाने के लिए उनकी सहायता करें, घटिया राजनीति न करें।
सभी हार के कारणों को समझ कर उन को उन को सोच कर आगे बड़ने की जरुरत है , एक बात तो पता चल गई कि जनता कभी भी नीचे पटक सकती है, अहंकार को छोड़ देना चाहिए और UMBLE रह कर ही राज निति करें.