देह की चाहत
मत करो मुझे समर्पित
उन हाथों में
जिन हाथों में जाकर
बन जाऊँ महज खिलौना
मन बहलाने का ।
मालूम है मुझे अपना दायरा
लोक-लाज, मान-मर्यादा
संस्कृति और अपना संस्कार ।
चाहत है मेरी
खो जाऊँ उनमें ही
जो मुझे अपना बनाये
स्वांग न रचाए अपना बनाने का ।।
बहुत खूब .