मांगता हूँ मौत मैं ,तू मौत क्यूँ मुझे न दे ।
क्या मिला है दुःख मुझे
जो मैं न मर सका अभी
हैं अश्रु क्या मिले मुझे
याद भी न धुल सकी अभी
ऐ खुदा तू जिन्दगी मुझे न दे
मांगता हूँ मौत मैं ,तू मौत क्यूँ मुझे न दे ।।
राख सब रतन हुए
भस्म सब जतन हुए
जिन्दगी की भावना भी मर गयी
सोच कर के सुख को आत्मा भी डर गयी
छीन जो उसे लिया
फिर ख़ुशी मुझे न दे
ऐ खुदा तू जिन्दगी मुझे न दे
……….मौत क्यूँ मुझे न दे ।।१।।
स्वप्न भी ना शेष है
मृत्यु ही विशेष है
कणों कणों में जिन्दगी के थी बसी सांवरी
मूढ़ मैं न कह सका,न कह सकी बांवरी
प्राण जो तू ले लिया
फिर ये तन मुझे न दे
ऐ खुदा तू जिन्दगी मुझे न दे
……..मौत क्यूँ मुझे न दे ।।२।।
सूरज क्षितिज का मर गया
प्रकाश प्राप्य दुःख से डर गया
साँझ बाँझ हो गयी
वरण विनाश का किये सुबह भी आ गयी
है चिता जो लग गयी
फिर आग क्यों मुझे न दे
ऐ खुदा तू जिन्दगी मुझे न दे
………मौत क्यूँ मुझे न दे ।।३।।
— कवि सौरभ सिँह परमार
बहुत अच्छी कविता .