स्त्री
अत्याचार
व्याभिचार
प्रताड़ना
अवमानना
चारो दिशाओं से
विषमताओं से
घिरी हुई स्त्री
का जीवन
सागर के सीने पर
टापू का होना है
फिर भी अपनी
सौम्यता
कर्मठ्ता
गहनता से
रचती है सृष्टि
मिले ना मिले
उसको तृप्ति !!
***भावना सिन्हा*** !!
अत्याचार
व्याभिचार
प्रताड़ना
अवमानना
चारो दिशाओं से
विषमताओं से
घिरी हुई स्त्री
का जीवन
सागर के सीने पर
टापू का होना है
फिर भी अपनी
सौम्यता
कर्मठ्ता
गहनता से
रचती है सृष्टि
मिले ना मिले
उसको तृप्ति !!
***भावना सिन्हा*** !!
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bahut badhiya
बहुत अछे विचार .
सुंदर भाव।
अच्छी कविता !