कविता

प्रेम दिवस

आज प्रेम दिवस पर कान्हा
मेरा प्रेम स्वीकार कर लो
इस मनमोहक छवि मे
मेरा भी आकार हर लो
न बन पाऊ भले मै राधा
ना तटस्थ मीरा जैसा मेरा अहम
पर ह्रदय मे एक तङप सी है
तेरे दर्श बिना नही मिलता चैन
झलक दिखा के मुझको मनमोहन
मेरा स्व्पन साकार कर लो
मेरी इन सांसो पर बस अब
तुम अपना अधिकार कर लो
आज प्रेम दिवस पर कान्हा
मेरा प्रेम स्वीकार कर लो

*एकता सारदा

नाम - एकता सारदा पता - सूरत (गुजरात) सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने [email protected]

One thought on “प्रेम दिवस

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह ! अगर प्रेम को प्रभु के चरणों में लगाया जाये तो कितना अच्छा हो !

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