मैं-तुम
तुम
शरद का
खुशनुमा दिन
मै उसकी
उजली किरण हुई
तुम
अंधेरी रात का
गगन पर
खिलता चांद
मै उसकी
शितलता हुई
तुम
बारिश की
ठंडी हवा का झोंका
मै उसकी
निर्मल नमी हुई
तुम
बसंत
मै पीला फूल बन
उसकी पहचान हुई
तुम सीपी
स्वाति बुंद सी
समाहित तुझमे
मै मोती बनी
तुम
सागर का किनारा
मै उफनती लहर
तुममे ही विलीन हुई
बने जो
एक दुसरे की भाषा
गढे जो
एक दुसरे की परिभाषा
वो प्रीत हुई
तुम
कान्हा की मुरली
तो सुध-बुध
हरने वाली
मैं उसकी धुन हुई !!!
****भावना सिन्हा***
adbhut anupam waah …
बढ़िया !