बाल कविता : होली का मौसम
सूरज बोला नीलगगन से,
धरती आज सजी कितनी है।
लाल, हरे, पीले रंगों से,
लगती स्वर्गलोक जितनी है।।
खेतों में चूनर सी फैली,
पीली सरसों इठलाती है।
लाल गुलाबों की क्यारी भी,
मोहक खुशबू बिखराती है।।
रंग बिरंगे रंग बिखरकर,
इन्द्रधनुष से बन जाते हैं।
रंग से खिले हुए चेहरों संग,
हृदयन्तर भी खिल जाते हैं।।
नील गगन बोला सूरज से,
धरती पर फागुन आया है।
अपने संग में रंग बाँटता,
होली का मौसम लाया है।।
होली खेल रहे हैं सब मिल,
चारो ओर खुशी छाई है।
मस्ती में चिल्लाती टोली,
खेलो रंग होली आई है।।
यह सुन करके सूरज ने भी,
बिखराया ज्यों नेह गुलाल।
लाल रंग से भीग गया फिर,
नील गगन का हृदय विशाल।।
बहुत सुन्दर कविता आपको होली की अग्रिम शुभकामना
प्रेम का सन्देश देती बहुत अच्छी कविता. बधाई.
बहुत सुन्दर साफ़ सुथरी कविता ! स्वागत है डॉ साहब !