महाशिवरात्री
“अरे!! दूर हटो यहां पर भीङ इकट्ठी ना करो, आज वैसे भी बहुत भीङ भङाका है” महादेव के मदिंर मे पुजारी जी ने मदिंर के बाहर बेठे भिखारीयों को लताङते हुआ कहा। “आज महाशिवरात्री है और भक्तों की लंबी लाईन, तुम सब कहां घुसे चले आ रहै हो। चलो भागो यहां से।”
वहां कुछ अधनंगे, लाचार, भूख से पीड़ित मासूम बच्चे और महिलाये मंदिर आने वाले भक्तो से भीख मांग रही थी और पुजारी उन्हें भगा रहा था। क्यूंकि भगवान से मिलने के लिये वो लाचार, बेबस लोग उनके आङे आ रहे थे।
भूख से बदहाल कुछ मासूम तो मंदिर से निकलती नाली मे अपने बर्तन और मूंह लगाते हुऐ लङने झगङने लगे । “आज बेतहाशा दूध मिलेगा, झगङो मत” पीछे से एक वृद्ध भिखारी लङखङाता हुआ खुद को संभाले हाथ मे कटोरा लिये बोलता हुआ आया।
“वैसे तो ये भक्त हम गरीबों पर इनायत नही करते, इसलिये भगवान ने कुछ एक ऐसे दिन बनाये है जहां किसी भी तरीके से सही हमारा त्यौहार भी बन जाता है।आज तो पूरे दिन इस नाली से दूध की धारा बहेगी” यह कहते हुऐ उसने भी अपना कटोरा मंदिर से निकलती नाली के मूंह पर लगा दिया.
rasm adaayagi ke rup me kam dudh shiv ling me daal kar ,shesh bache dudh ko …unhe de dena chaahiye jinhe dudh ki zarurat ho …….manushy ko apne vivek ka upyog karna chaahiye ..(.udaaharan ……sthaan ko pavitr karne ke liye jaise ham log ganga jal chhidakte hai ..bas )…aapki laghu katha achchhi lagi
बहुत करारी लघु कथा. क्या तमाचा मारा है आपने नाली में दूध बहाने वालों के गाल पर ! बहुत खूब !!
क्या भोला भंडारी ऐसे भक्तों की मूर्खता पर खुश होता होगा या मन ही मन उनको दुत्कारता होगा?