बाल कविता

बच्चों को हरषाते बादल

उमड़-घुमड़ कर आते बादल

पेड़ों को नहलाते बादल

ठंडा-ठंडा पानी देकर

बच्चों को हरषाते बादल ।

 

पूरे अंबर में छा जाते

पानी इतना कैसे लाते ?

अपने हाथों ताल-तलैया

पलभर में भर जाते बादल |

 

सड़कें जब गरमी से जलतीं

तेज हवाएं हर पल चलतीं

सूरज की ऎसी करनी पर

गुस्से से गुर्राते बादल।

 

जब निदाध से तपती धरती

जब ज़मीन रह जाती परती

खेतों में पानी बरसाकर

खुशियाँ घर-घर लाते बादल |

स्वर्णा साहा

शिक्षा- एम ए (हिंदी), एम ए (लोक प्रशासन) | प्रकाशन - नंदन, बालवाटिका, ट्रू मीडिया, साहित्य समीर, अंगिकालोक, प्रगतिवार्ता, मानस मंथन, सत्यचक्र आदि हिंदी की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेखों और कविताओं का नियमित प्रकाशन | पुरस्कार - 'बालवाटिका' में प्रकाशित वर्ष (२०१४) की श्रेष्ठ कविता के लिए स्व० भागवतीदेवी पाठक स्मृति बालवाटिका पुरस्कार, विभिन्न सांस्कृतिक एवं महिला संगठनों द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में सम्मानित/पुरस्कृत | ईमेल - [email protected]

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