“बचपन “
“बचपन” को याद कर के अपना वर्तमान नही बिगाड़ना चाहती । बहुत ही मुश्किल भरा बचपन था मेरा। सात बच्चों को पालना पिताजी के लिए बड़ी मुसीबत भरा काम था। उस पर आय सीमित। पिताजी बेकरी में हेल्पर का काम करते थे। माँ आस-पास के घरो में खाना बनाती थी। फिर भी दो वक़्त की रोटी का जुगाड़ नही होता था। कई बार माँ को भूखे पेट सोना पड़ता था। पढ़ने में रूचि और तीव्र इच्छा होने के बावजूद पांचवी तक पढ़ने के आगे विराम लगा दिया पिताजी ने असमर्थता जता कर स्कूल जाना बंद करा दिया था। दूसरे भाई बहन तो स्कूल का मुहं तक नही देख पाये। मुझे पढ़ना था तो गाँव के प्रधान से मदद माँग कर पढ़ी। मेरा उद्देश्य था कि पढ़ -लिख कर गाँव के बच्चों के लिए निशुल्क शिक्षा की व्यवस्था करना। आज गाँव में सरकारी स्कूल में प्रधानाध्यापिका के रूप में कार्यरत हूँ। और स्कूल के अलावा घर में निशुल्क पढ़ाती हूँ। स्कूल में असहाय बच्चों की मदद करना मेरी प्रथम जिम्मेदारी है।
शान्ति पुरोहित
शुक्रिया गुरमेल भाई साहब
शांती बहन, बचपन को याद कर वर्तमान नहीं बिगाड़ना चाहती लेकिन यह आप का बचपन ही तो था जिस के कारण आप इतनी सेवा कर रही हैं और दूसरों का भला कर रहीं हैं ताकिः वोह भी मुसीबतों भरे अपने वर्तमान में अपना बचपन ना खो दें.