मिन्नतें
रात भर बुलाते रहे हम,
पर नींद हमारी आँखों से,
नाराज सी रही!
की कोशिश बहुत,
मिन्नतें भी की,
पर आने को पल भर भी,
न तैयार हुई!
रात भर बुना किये,
ख्बाबों मैं उन्हें,
उनके ख्यालों मैं ही बसर,
हमारी हर रात हुई!
खो गये हैं उनके इश्क मैं,
इस कदर,
न दिन पर हक रहा न
अपनी रात रही!
बहुत समझाया दिल को,
की मिन्नत भी बहुत,
पर कहाँ अपने बस मैं
अब कोई भी बात रही!
“आशा”डूबे हैं उनके इश्क मैं,
इस कदर ,
कि उबरने की हर कोशिश
नाकाम रही!
रात भर बुलाते रहे हम,
पर नींद हमारी आँखों से,
नाराज सी रही!
…राधा श्रोत्रिय”आशा”
६-०३-२०१४
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बहुत खूब.