कहानी — बैस्ट- फ्रेंड
नवरात्र के अवसर पर श्रीमती जी द्वारा कालोनी के बच्चों को कन्यापूजन हेतु आमंत्रित किया गया था | आज का दिन तो बच्चों, विशेषकर कन्याओं का विशेष होता है जिन्हें बुला बुलाकर देवी रूप-भाव में पूजा जाता है और खाना खिलाया जता है, भेंट भी दी जाती है | लड़कों को लांगुरा अर्थात देवी का मित्र, रक्षक, सेवक के रूप में पूजा जाता है |
आपस में तेजी से बातें करती हुई लड़कियों का झुण्ड ने जिसमें कुछ लडके भी थे मुख्य फाटक में प्रवेश किया | सभी चार से दस वर्ष के बच्चे थे |
‘तेरा बेस्ट -फ्रेंड कौन है शोभना ?’, एक बच्ची ने दूसरी से पूछा ?
‘चारू …नहीं नहीं ..शोभित .. ‘शोभना बोली |
सरला उदास सी होगई शायद इसलिए कि शोभना ने उसे बैस्ट- फ्रेंड क्यों नहीं बताया | इतने छोटे-छोटे बच्चे भी बैस्ट -फ्रेंड बनाने लगे ! मैंने सोचते हुए एक बच्ची से पूछा – ‘ये बैस्ट -फ्रेंड क्या होता है ?’
‘अंकल, बैस्ट फ्रेंड… मतलब बैस्ट फ्रेंड |’
‘पर फ्रेंड तो सभी अच्छे होते हैं’, मैंने कहा, ‘जो अच्छा बच्चा होगा, अच्छा आदमी होगा वही तो फ्रेंड होगा, जो अच्छा नहीं होगा उसे आप क्यों फ्रेंड बनायेंगे |’
बच्चे सोच में पड़ गए| कुछ आश्चर्य से देखने लगे, कुछ असमंजस में शायद कि अंकल को यह भी नहीं पता |
मैं भी सोचने लगा ….आजकल हर उम्र के बच्चे…लडके, लड़कियां सभी में बैस्ट- फ्रेंड बनाने का क्रेज़ हो चला है, ठीक उसके पश्च-परिणामी प्रभाव बॉय-फ्रेंड, गर्ल-फ्रेंड के क्रेज़ की भांति| चाहे वे फ्रेंड का अर्थ भी नहीं समझते हों अभी | वे भी क्या करें हर सीरियल, सिनेमा, टीवी, रेडियो, कथा–कहानियों में, स्कूलों में यही दिखाया जा रहा है | शायद पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव है | बच्चे जो देखेंगे सुनेंगे वही तो सीखेंगे करेंगे |
मित्र तो सदा होते ही हैं, होते ही रहे हैं …अच्छे मित्र.. पक्के मित्र : पर ये बैस्ट -फ्रेंड की अवधारणा कहाँ से आई, क्या ये आयातित है ? लंगोटिया यार भी पक्के मित्र को कहा जाता था, शायद बचपन के वस्त्रहीन या कच्छा-ड्रेस कोड के समय के मित्र ….एक लोटा पानी के बदले पगड़ी-बदल मित्र भी होते थे | पौराणिक काल के राधा-कृष्ण, कृष्ण-द्रौपदी, कृष्ण-अर्जुन, कृष्ण-सुदामा, कृष्ण-उद्धव, राम-केवट, राम-हनुमान-सुग्रीव आदि आदर्श –अच्छे मित्र थे | क्या वे भी बैस्ट- फ्रेंड थे | पर कृष्ण के बैस्ट -फ्रेंड कौन थे? राधा-कृष्ण तो बाद में प्रेमी-प्रेमिका भी बने…द्रौपदी, सुदामा की मित्रता.. अच्छे मित्र व सदा सहायक बन कर निभाई गयी | क्या निस्वार्थ मित्र को बैस्ट – फ्रेंड कहा जाय… या आदर्श को|
परन्तु आजकल तो बैस्ट फ्रेंड बदलते भी रहते हैं और बडे होकर बॉय-फ्रेंड व गर्ल-फ्रेंड के क्रेज़ में बदल जाते हैं | हमारे समय में तो बावा, नाना, दादी, नानी, मौसी, बुआ, मामा, चाचा ….सर्वाधिक तो बावा-दादी बच्चों के अच्छे मित्र होते थे जो बच्चों के साथ समय बिताने के साथ-साथ अच्छे विचार-भाव, आदर्श, संस्कार के साथ पारिवारिक-संस्कार भी देते थे| पर आज के इकाई-परिवार व भागम-भाग ज़िंदगी में वे कहीं फिट ही नहीं बैठपाते और बच्चों को बैस्ट -फ्रेंड ढूँढने पड़ते हैं जहां कभी-कभी गलत राह वाले मिलने की संभावना भी रहती है |
फिर….. मैं सोचता गया, फ्रेंड में भी, मित्रता में भी .. .बैस्ट ..अर्थात केटेगरी, क्लास,वर्ग, श्रेणी…..सभी मित्र अच्छे मित्र क्यों नहीं …? हम चाहे जितने प्रगतिशील, उन्नत, समाजवादी, लोकतांत्रिक बन जायं पर वर्गहीन समाज कब बना है, कब बनेगा, शायद कभी नहीं| श्रीकृष्ण, राधा, सुदामा, अर्जुन आदि अच्छे –पक्के दोस्त थे …पर बैस्ट की अवधारणा कहाँ?…बालापन के मित्र का भी समादर चाहे वर्षों बाद मिले… द्रौपदी की मित्रता की भी लाज , अर्जुन-उद्धव का उद्धार …समान भाव से …..पर वे कृष्ण थे ..समदर्शी | हमारा समाज कब बनेगा..हम कब बनेंगे समदर्शी, बस कृष्ण को पूजते रहेंगे, अपनाएंगे नहीं ……|
‘अंकल, आप भी सोच में पढ़ गए |’ एक बच्चे ने पूछा तो मेरी विचार श्रृंखला टूटी |
‘अं…हाँ …मैंने कहा, ‘मुझे लगता है हमें सभी मित्रों को बैस्ट समझना चाहिए|’
‘ पर बैस्ट -फ्रेंड तो एक ही होता है सब कैसे हो सकते हैं !‘, एक साथ सब बच्चे बोले |
चलो बच्चो ! आओ इधर बैठो …श्रीमतीजी ने कन्या-लांगुरा पूजने हेतु आवाज़ लगाई | सभी बच्चे ख़ुश होकर चहचहाते हुए डाइनिंग टेबल पर बैठ गए |