जाना है मुझको, मैं चला जाऊँगा
जाना है मुझको, मैं चला जाऊँगा
चाहो ना चाहो, पर याद आऊँगा।
जब-जब गुँजेगी आवाज़ तेरी,
जब नाम तेरा लिया जाएगा
हर सुर में, हर बोल को
मैं संग तेरे गुनगुनाऊँगा।
चाहो ना चाहो, पर याद आऊँगा॥
मंजिल दूर, राह ना आसान है
कभी चलूँगा, कभी ठहर जाऊँगा
मैं सफ़र का, गुमनाम मुसाफ़िर तेरा
हर पल साया बन, साथ निभाऊँगा।
जाना है मुझको, मैं चला जाऊँगा,
चाहो ना चाहो, पर याद आऊँगा॥
— राजीव उपाध्याय
बहुत सुन्दर !
धन्यवाद सिंघल साहब। आपसे निवेदन है कि आप अपनी टिप्पणियों में मेरी कमजोरियों की ओर ध्यान दिलाने का कष्ट करें। इस तरह मैं आपके सानिध्य का भरपूर लाभ ऊठा सकूँगा।
सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति !
प्रोत्साहन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद डा साहिबा।