महापुरूषों के प्रेरक एवं श्रद्धास्पद महर्षि दयानन्द
महर्षि दयानन्द महाभारत काल के बाद विगत पांच हजार वर्षों में वेदों के पहले ऋषि हुए हैं। उन्होंने वेदों का संस्कृत और हिन्दी में सत्य वेदार्थ वा भाष्य करके मानवता का जो उपकार किया है उसके लिए संसार उनका सदा सर्वदा ऋणी रहेगा। महर्षि दयानन्द को ही इस बात का श्रेय प्राप्त है कि उन्होंने सच्चे ईश्वर के स्वरूप को जनसामान्य तक प्रचारित ही नहीं किया अपितु जड़ देवी-देवताओं के यथार्थ स्वरूप से भी सबको परिचित कराया और बताया कि सभी देवी-देवताओं में उपासनीय केवल सृष्टिकर्ता सच्चिदानन्दस्वरूप ईश्वर ही है। उन्होंने तर्कों व प्रमाणों से सिद्ध किया कि ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना व उपासना करना प्रत्येक मनुष्य का परम कर्तव्य है। जो मनुष्य ईश्वर के सत्य स्वरूप को जानने का प्रयत्न नहीं करते और यथासमय ईश्वरोपासना अर्थात सन्ध्या वा योगाभ्यास नहीं करते वह कृतघ्न होते हैं। कृतघ्न इस कारण कि जिस ईश्वर ने हमारे लिए यह समस्त संसार वा ब्रह्माण्ड अर्थात् सूर्य, चन्द्र, पृथिवी, वायु, जल, सुमद्र, नदियां, झरने, पर्वत, मैदान, रेगिस्तान, वन, वृक्ष, नाना प्रकार के फल-फूल बनाकर व हमें मनुष्य का जन्म देकर माता-पिता-विद्वानों आदि से उपकृत किया है, उसे जानने का प्रयास न करना और जानकर उसकी स्तुति-प्रार्थना और उपासना न करना महा-कृतघ्नता है।
हम यह भी जोड़ना चाहते हैं कि जो ईश्वर के सत्य स्वरूप को न जानकर अविधि से भक्ति वा उपासना करता है वह भी एक प्रकार से कृतघ्नों की श्रेणी में ही आता है। इसका कारण यह है कि जिस ईश्वर ने हमें इतने सुख व सुख की सामग्री प्रदान की है क्या हमारा यह कर्तव्य नहीं बनता कि हम उसके यथार्थ स्वरूप को जानकर उपयुक्त विधि से उसकी उपासना करें? जो ऐसा नहीं करते वह कृतघ्न ही कहे जा सकते हैं। अतः सभी मनुष्यों को ईश्वर के सत्य स्वरूप को जानकर उसकी उपासना करनी चाहिये। ईश्वर के सत्य स्वरूप को जानने व सही विधि से उपासना करने के लिए महर्षि दयानन्द लिखित सत्यार्थ प्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्य भूमिका, संस्कार विधि, आर्याभिविनय, पंचमहायज्ञविधि, व्यवहारभानु, गोकरूणानिधि सहित उनके जीवन चरित्र आदि का अध्ययन भी सहायक है एवं इनसे लाभ उठाना चाहिये और मानव जीवन को सफल कर जीवोन्नति करनी चाहिये जिससे अभ्युदय व निःश्रेयस की प्राप्ति हो सके।
प्रस्तुत लेख में हम महर्षि दयानन्द के विषय में देश के कुछ विद्वानों के विचार प्रस्तुत कर रहे हैं जिनसे उनके स्वरूप व व्यक्तित्व पर कुछ प्रकाश पड़ता है। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद ने कहा है कि महर्षि दयानन्द जी के उपदेशों ने करोड़ों लोगों को नवजीवन, नवचेतना और नया दृष्टिकोण प्रदान किया है। देश की आजादी के लिए अपना जीवन एवं सर्वस्व समर्पित करने वाले और दो जन्मों के कारावास की सजा पाने वाले महान क्रान्तिकारी और देश भक्त वीर विनायक सावरकर जी ने कहा है कि महर्षि दयानन्द जी स्वाधीनता संग्राम के सर्वप्रथम योद्धा और हिन्दू जाति के रक्षक थे। उनके द्वारा स्थापित आर्य समाज ने राष्ट्र की महान सेवा की है और कर रहा है। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का नाम जिह्वा पर आते ही हृदय उनके उपकारों व देशभक्ति के कार्यों को स्मरण कर उनके प्रति श्रद्धा से भर जाता है। वह वस्तुतः भारत माता के अनूठे, महान, परम देशभक्त सपूत थे और उन्होंने अपना सर्वस्व भारत माता को अर्पित किया। वह महर्षि दयानन्द और उनके द्वारा स्थापित आर्य समाज की प्रशंसा करते हुए कहते है कि संगठन कार्य, दृढ़ता, उत्साह और समन्वयात्मकता की दृष्टि से आर्य समाज की समता कोई नहीं कर सकता। महर्षि दयानन्द के विषय में श्री अनन्तशयनम् आयंगर जी ने लिखा है कि गांधीजी राष्ट्र के पिता थे, तो महर्षि दयानन्द सरस्वती राष्ट्र के पितामह थे। श्री आयंगर जी के इस कथन के आधार पर हम यह कहना चाहेंगे कि श्री आयंगर जी ने जितना महर्षि दयानन्द को समझा था उतना किसी राजनैतिक दल व उसके नेता ने उन्हें नहीं समझा अथवा महर्षि दयानन्द जिस सम्मान के अधिकारी थे, राजनैतिक कारणों से वह उनको प्रदान नहीं किया गया।
देश की आजादी में लाला लाजपतराय जी का महान योगदान है। शहीद भगत सिंह ने लालाजी पर अंग्रेजों के अत्याचारों के कारण ही सांडर्स को अपनी पिस्तौल का निशाना बनाया था जिसमें शहीद चन्द्रशेखर आजाद, शहीद सुखदेव, शहीद राजगुरू, आजादी की जीवित शहीद दुर्गाभाभी व अन्य अनेक क्रान्तिकारी सम्मिलित थे। लाला लाजपतराय जी लिखते हैं कि स्वामी दयानन्द जी मेरे गुरू हैं। मैंने संसार में केवल उन्हीं को गुरू माना है। वे मेरे धर्म के पिता हैं और आर्य समाज मेरी धर्म की माता है। भारत के प्रथम उपप्रधान मंत्री और तेजस्वी व यशस्वी गृहमंत्री लौहपुरूष सरदार वल्लभभाई पटेल ने भी महर्षि दयानन्द को श्रद्धांजलि देते हुए कहा है कि मैं ऋषि दयानन्द जी को अपना राजनैतिक गुरू मानता हूं। मेरी दृष्टि में तो ये महान विप्लववादी नेता और राष्ट्र विधायक थे। हम सभी यह जानते हैं कि लगभग 600 स्वतन्त्र रियासतों सहित कश्मीर का भारत में विलय कराने में सरदार पटेल की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका थी। यदि वह राजनीति में न होते तो कह नहीं सकते कि स्वतन्त्र भारत का स्वरूप क्या होता परन्तु यह निश्चित है कि जो अब है वह कदापि न होता क्योंकि अनेक रियासतें या तो स्वतन्त्र रहतीं या पाकिस्तान आदि में अपना विलय करती जो कश्मीर की ही तरह भारत के लिए सिरदर्द का काम करतीं। देश की आजादी के एक और प्रमुख नेता और क्रान्तिकारी देवतास्वरूप भाई परमानन्द ने भी महर्षि दयानन्द को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की है। भाई परमानन्द जी जब अफ्रीका में वैदिक धर्म के प्रचारार्थ गये थे तो महात्मा गांधी ने वहां उनके दर्शन कर सान्निध्य प्राप्त किया था और श्रद्धावश उनका बिस्तर अपने कंधे वा सिर पर उठा लिया था। परमानन्द जी ने लिखा है कि स्वामी दयानन्द एक ऐसे प्रकाश के स्तम्भ हैं जिन्होंने असंख्य मनुष्यों को सत्य का मार्ग बतलाया है। मैं अपने को उनका अनुयायी कहलाने में गर्व अनुभव करता हूं।
यह भी उल्लेखनीय है कि आजादी के आन्दोलन में काकोरी काण्ड के विख्यात मास्टरमाइण्ड शहीद पं. रामप्रसाद बिस्मिल उनकी साक्षात शिष्य परम्परा में थे। शहीद अशफाक उल्ला खां के साथ उनकी मित्रता व सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध जातीय वा कौमी एकता का प्रशंसनीय उदाहरण है। यह भी तथ्य है कि देश की आजादी के आन्दोलन में लगभग 80 प्रतिशल आन्दोलनकारी महर्षि दयानन्द व उनके द्वारा स्थापित आर्यसमाज की विचारधारा से प्रभावित होते थे। क्रान्तिकारियों के अग्रणीय व आद्यगुरू व आचार्य पं. श्यामजी कृष्ण वम्र्मा भी उनके साक्षात् शिष्य थे व उन्हीं की प्रेरणा इंग्लैण्ड गये थे। उनकी परम्परा में वीर सावरकर एवं अन्य क्रान्तिकारी हुए हैं। महाराष्ट्र के महादेव गोविन्द रानाडे महर्षि दयानन्द के साक्षात शिष्य थे। आपने ही उन्हें पूना में आमत्रित कर उनके प्रवचन कराये थे। श्री रानाडे गोपालकृष्ण गोखले के राजनैतिक गुरू थे और गोखले जी के शिष्य महात्मा गांधी थे। इस प्रकार हम देखते हैं देश की आजादी की नरम व गरम दोनों धाराओं के आद्यगुरू महर्षि दयानन्द थे। इस आधार पर कांगे्रस के नेता श्री अनन्तशयनम् अय्यंगर जी का महर्षि दयानन्द को देश का पितामह कहना सर्वथा उचित व युक्तिसंगत है। अमेरिकन महिला मैडम बेलेवेटेस्की ने उनको श्रद्धांजलि देते हुए कहा था कि जब भारत में आजादी का मन्दिर बनेगा तो उसमें सबसे ऊंची मूर्ति महर्षि दयानन्द की होगी।
हम अपने अध्ययन के आधार पर यह कह सकते हैं कि महर्षि दयानन्द जैसा देशभक्त, ईश्वरभक्त, वेदभक्त, मानवमात्र का हितैषी, सत्यप्रेमी, असत्यद्वेषी, वेदप्रचारक, वेदर्षि, महर्षि, आप्तपुरूष, योगेश्वर, ईश्वर के सच्चे स्वरूप का अनुसंधानकर्ता व प्रचारक, वेदों का उद्धारक, अवैदिक मूर्तिपूजा, अवतारवाद, फलितज्योतिष, सभी धार्मिक अन्धविश्वासों व मांसाहार आदि असत्य कार्यों का विरोधी व खण्डनकत्र्ता, स्वराज्य-सुराज्य का मन्त्रदाता एवं पोषक, वैदिक अहिंसक यज्ञों के पुनरोद्धारक प्रचारक व उन्हें वैज्ञानिक आधार पर स्थापित करने वाला, मानवमात्र के हितैषी भगवान मनु पर लगाये गये मिथ्या आरोपों व दोषों से उन्हें मुक्त व निर्दोष सिद्ध करने वाला, स्त्रियों की शिक्षा, उनके स्वयंवर विवाह, स्त्रियों का वेदाध्ययन, उनको ऋषिका बनाने का मार्ग प्रशस्त करने वाला व उन्हें पुरूषों के समान वरन् उनसे कुछ अधिक अधिकार प्रदान करने वाला, शूद्रों, श्रमिकों, निर्धनों व किसानों का सच्चा समर्थक, हितैषी व उद्धारकर्ता तथा उन्हें वेदाध्ययन का अधिकार देकर उन्हें मानव समाज के शिखर पुरूष अर्थात् ऋषि-ब्राह्मण बनाने का अवसर देने वाला उनके समान अन्य महापुरूष देश व संसार में दूसरा नहीं हुआ। उनके सत्यार्थ प्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्य भूमिका एवं वेदभाष्य आदि ग्रन्थों से शिक्षा व प्रेरणा ग्रहण कर व उसे क्रियान्वित कर ही हमारा देश संसार का गुरू बन सकता है।
–मनमोहन कुमार आर्य
बहुत अच्छा लेख. सुआमी दयानंद जी के बारे में जान कर बहुत अच्छा लगा .
आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीय श्री गुरमेल जी। मैंने आपको सहस्त्रधारा, देहरादून में हिंदी चलचित्र होली आई रे के एक गाने का लिंक आपकी आत्म कथा वाले लेख पर प्रतिक्रिया के साथ सूचित किये है। कृपया यथावसर देखने का कष्ट करें।