उपन्यास अंश

यशोदानंदन-११

कंस तो कंस था। वह पाषाण की तरह देवी देवकी की याचना सुनता रहा, पर तनिक भी प्रभावित नहीं हुआ। देवी देवकी ने कन्या को अपनी गोद में छिपाकर आंचल से ढंक दिया था, परन्तु कंस ने आगे बढ़कर गोद से कन्या छीन ली। स्वार्थ और भय ने उसके हृदय से स्नेह और सौहार्द्र को समूल नष्ट कर दिया था। अपनी नवजात भानजी का एक पैर पकड़कर उसे हवा में लहराया और पूरी शक्ति से पत्थर पर पटक दिया। पर यह क्या? नवजात कन्या उसके हाथों से फिसलकर आकाश में पहुंच गई। बिजली चमकने जैसा प्रकाश सर्वत्र फैल गया। बादलों ने गंभीर गर्जना की और योगमाया ने इसी के साथ किया एक भीषण अट्टहास। श्रीविष्णु की अनुजा के रूप में प्रकटित अष्टभुजा को देखकर विस्मय से कंस की आँखें फटी रह गईं। सुन्दर वस्त्रों, पुष्प-मालाओं तथा आभूषणों से सुशोभित उस आदि शक्ति की आठ भुजाएं थीं जिनमें वे धनुष, भल्ल, तीर, तलवार, शंख, चक्र, गदा और ढाल धारण किए हुए थीं। सिद्ध, चारण, गंधर्व, अप्सरा, किन्नर तथा दिव्य लोकों के समस्त देवता गण उनकी प्रार्थना कर रहे थे। गुरु गंभीर वाणी में देवी अष्टभुजा ने कंस को संबोधित किया —

“अरे धूर्त! महामूर्ख! क्यों अपनी शक्ति नष्ट कर रहा है? मैं अवध्या हूँ। तुम मेरा वध नहीं कर सकते। मै ही इस सृष्टि की उत्पत्ति का मूल हूँ। तेरी माँ भी मुझसे उत्पन्न हुई है। दुष्ट, जा पहले अपनी माँ का वध कर, फिर मेरे विषय में सोचना। मैंने तुम्हें कई अवसर प्रदान किए – स्वयं में सुधार लाने का। अरे मूढ़! जिस मृत्यु से डरकर तूने इतने महापाप किए, क्या वह मृत्यु तेरे पास कभी नहीं आयेगी? क्या तू इतना भी नहीं जानता कि इस पृथ्वी पर पैदा होने वाले प्रत्येक जीव की मृत्यु निश्चित है? फिर मृत्यु से क्या भय? मृत्यु एक अवसर देती है, परम सत्ता में विलीन होने का, स्वर्ग प्राप्त करने का या रौरव नरक में जाकर अगणित यातनायें भोगने का। पापी, तुझे अपने कुकर्मों के कारण जन्म-जन्मान्तर तक नरक की यातनायें भोगनी पड़ेंगी। तुमने ईश्वर की तरह अबोध और निरपराध देवी देवकी और वसुदेव जी के छः पुत्रों की निर्मम हत्या की है। तेरे पाप का घड़ा भर चुका है। तुम्हें ब्रह्मा, विष्णु और स्वयं महेश भी नहीं बचा सकते। तुझे मारने वाला इस संसार में पहले ही प्रकट हो चुका है। सूर्योदय और सूर्यास्त के सत्य की भांति तेरी मृत्यु भी अटल है। प्रतीक्षा कर। अपने शेष जीवन में भी तू जी नहीं सकेगा। प्रति दिन, प्रति पल मृत्यु की आशंका में घुट-घुटकर मरेगा।”

कंस आँखें उठाकर अन्तरिक्ष में देखता रहा, कन्या आकाश में विलीन हो गई। उसके एक-एक शब्द कंस के कानों में नगाड़ों जैसी ध्वनि कर रहे थे। भय से उसका अंग-अंग कांप रहा था। ठीक से खड़ा रहना भी उसके लिए कठिन होने लगा। वह घुटने पर बैठ गया। दोनों हाथों को जोड़ वसुदेव जी और देवी देवकी की ओर कातर नेत्रों से देखते हुए विनम्र स्वर में बोला —

“मैं आप दोनों से क्षमा-याचना करूं भी, तो किन शब्दों में? मैंने घोर पाप किए हैं। कोई भी मनुष्य, देव या असुर अपने ही भांजों का वध नहीं कर सकता। मैंने असुरों के लिए भी वर्जित आचरण किया है। मैं नहीं जानता कि मेरे इन द्वेषपूर्ण कार्यों का क्या परिणाम होगा? संभवतः मुझे रौरव नरक में स्थान प्राप्त हो। किन्तु मैं अत्यन्त विस्मित हूँ कि आकाशवाणी क्यों सच नहीं उतरी? असत्य संभाषण, असत्य प्रचार मानव-समाज तक ही सीमित नहीं है। मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि स्वर्ग के देवता भी मिथ्या भाषण करते हैं। स्वर्ग के निवासियों की वाणी पर विश्वास करके ही मैंने आपके अबोध शिशुओं की हत्या की। मेरी मति मारी गई थी। भले ही सारा संसार इस पाप के लिए मुझे दोषी ठहराए, परन्तु मैं इसके लिए देवताओं को ही दोषी मानता हूँ। उनकी मिथ्या आकाशवाणी के कारण ही मैं ऐसे क्रूर कर्म के लिए प्रेरित हुआ। परन्तु वसुदेव तथा देवकी! आप दोनों श्रेष्ठ हैं। संकट की घड़ी में भी आपने अपना धैर्य नहीं खोया। पतिव्रता देवकी द्वारा हृदय से दिये गए एक शाप के प्रभाव से ही मेरा विनाश हो सकता था, परन्तु इसने मेरे इतने अत्याचारों के पश्चात्‌ भी मेरा अनिष्ट नहीं चाहा। आपकी सन्तानों की मृत्यु पर आज आपके साथ मुझे भी अपार कष्ट हो रहा है, पर नियति को कौन टाल सकता है? जो होना था, वह तो हो ही गया। अब शोक करने से क्या लाभ? हममें से प्रत्येक व्यक्ति पराशक्ति के वश में है और वह पराशक्ति हमें एकसाथ नहीं रहने देती। हमें कालक्रम में अपने मित्रों तथा परिजनों से विलग होना ही पड़ता है। लेकिन यह भी सत्य है कि भौतिक शरीरों के नष्ट होने पर भी आत्मा का अस्तित्व कभी नष्ट नहीं होता। आपलोग स्वयं महान्‌ ज्ञानी हैं। मैं अपनी अल्प बुद्धि से आपको समझाने में असमर्थ हूँ। मैंने निश्चित रूप से आप दोनों को असंख्य यातनाएं दी है, आपके प्रति घोर अत्याचार किया है। मैं क्षुद्र हृदय हूँ। हे विशाल हृदय! अगर संभव हो, तो मुझे क्षमा कर दीजिएगा।”

कंस ने अविलंब देवी देवकी और वसुदेव जी की बेड़ियां कटवा दी। दोनों बन्धनमुक्त हो गये। कंस भारी कदमों से अपने प्रासाद में लौट आया।

मनुष्य जैसा होता है, उसे वैसे ही सलाहकार मिल जाते हैं। सचिव और वैद्य अगर मुंहदेखी और राजा या बीमार के मन के अनुकूल ही बातें करने लगें, तो सर्वनाश समीप आ जाता है। कंस के मंत्री और सलाहकारों की मंडली धूर्त, स्वार्थी और चाटुकार थी। कंस ने दिन निकलने पर मंत्रिपरिषद की बैठक बुलाई और रात्रि की घटना का विस्तार से वर्णन करते हुए मंत्रियों से सलाह आमंत्रित किया। मंत्रियों ने कंस को एकमत से सलाह दी —

“महाराज! देवताओं की कौन सी बात सत्य मानी जाय और कौन सी असत्य? आकाशवाणी को सत्य माना जाय या वसुदेव की नवजात कन्या की बात? दोनों कथनों में सामंजस्य बैठाइये महाराज। हमें किसी भी अनिष्ट की संभावना को समूल नष्ट कर देना चाहिए। आकाशवाणी को यदि असत्य मान भी लिया जाय, तो भी वसुदेव की नवजात कन्या के कथन का महत्त्व कम नहीं होता। उसने कहा है कि तुम्हारा वध करने वाला अन्यत्र कहीं जन्म ले चुका है। इस कथन को हल्के में नहीं लिया जा सकता। यह सत्य है कि इस धरा पर आपको पराजित करने की सामर्थ्य न किसी सुर में है और न असुर में। फिर भला इस मनुष्य की क्या औकात? परन्तु इन पराजित देवताओं द्वारा नित-प्रतिदिन रचे जा रहे षडयंत्रों से हमें सावधान रहना ही पड़ेगा। हमारा आग्रह है कि भविष्य के मार्ग को पूर्णतः कंटकमुक्त करने हेतु हमें आज और आज से पूर्व पिछले दस दिनों में जन्मे मथुरा और इसके आसपास के शिशुओं का वध कर देना चाहिए। न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी। इसपर अविलंब क्रियान्यवन आरंभ कर देना चाहिए।”

विनाशकाले विपरीत बुद्धि। कंस को मंत्रियों की सलाह पसंद आ गई। तत्काल प्रभाव से आदेश का क्रियान्यवन सुनिश्चित किया गया। मथुरा और आसपास के समस्त शिशुओं की हत्या कर दी गई। यमुना पार के क्षेत्रों में इसे लागू नहीं किया गया। वहां के शिशुओं और बालकों पर दृष्टि रखने के लिए विश्वस्त गुप्तचर तैनात कर दिए गए।

 

बिपिन किशोर सिन्हा

B. Tech. in Mechanical Engg. from IIT, B.H.U., Varanasi. Presently Chief Engineer (Admn) in Purvanchal Vidyut Vitaran Nigam Ltd, Varanasi under U.P. Power Corpn Ltd, Lucknow, a UP Govt Undertaking and author of following books : 1. Kaho Kauntey (A novel based on Mahabharat) 2. Shesh Kathit Ramkatha (A novel based on Ramayana) 3. Smriti (Social novel) 4. Kya khoya kya paya (social novel) 5. Faisala ( collection of stories) 6. Abhivyakti (collection of poems) 7. Amarai (collection of poems) 8. Sandarbh ( collection of poems), Write articles on current affairs in Nav Bharat Times, Pravakta, Inside story, Shashi Features, Panchajany and several Hindi Portals.

One thought on “यशोदानंदन-११

  • विजय कुमार सिंघल

    मान्यता तो यह है कि वासुदेव और देवकी को कृष्ण ने कंस को मारने के बाद मुक्त कराया था।
    वैसे उपन्यास बहुत रोचक है।

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