कविता

“आकाश की परी मेरे घर उतर गई”

“ये जिंदगी भी मेरी अचानक मँचल गई,
ये उम्र चारू चेहरें की खातिर फिसल गई,
मुझको तो उसकी आँखों ने मदहोश कर दिया,
नशा प्यार का देकर मेरी जाना किधर गई।

फिर जिंदगी भी मेरी अचानक सँवर गई,
सूरज की किरणें खुशियाँ बनकर बिखर गई,
मेरी जान वो नादान को ढूँढा कहाँ कहाँ,
वो आकाश की परी थी मेरे घर उतर गई….!”

“नीरज पान्डेय”

नीरज पाण्डेय

नाम- नीरज पाण्डेय पता- तह. सिहोरा, जिला जबलपुर (म.प्र.) योग्यता- एम. ए. ,PGDCA Mo..09826671334 "ना जमीं में हूँ,ना आशमां में हूँ, तुझे छूकर जो गुजरी,मैं उस हवा में हूँ"

One thought on ““आकाश की परी मेरे घर उतर गई”

  • संगीता सिंह 'भावना'

    बेहतरीन

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