लघुकथा : दूसरा कन्धा
“पहले के लोग दस-दस सदस्यों का परिवार कैसे पाल लेते थे | अपनी जिन्दगी तो मालगाड़ी से भी कम स्पीड पर घिसट जैसी रही है | ” मंहगाई का दंश साफ़ झलक रहा था चेहरे पर |
“पहले सुरसा मुख धारण किय ये मंहगाई कहाँ थी ‘जी’ |अब तो ये दो ही ढंग से पालपोश लें बहुत है |” अफ़सोस करती हुई पत्नी बोली
” मंहगाई की मार से घर के बजट पर रोज एक न एक घाव उभर आता है | कल ही बेटी १०० रूपये उड़ा आई तो बजट चटक कर उसके गाल पर बैठ गया |” पछतावा साफ़ झलक रहा था माँ की आवाज में |
“मारा मत करो , सिखाओ , ‘कैसे चादर जितनी पैर’ ही फैलाये |” समझाते हुए पति बोले |
“क्या करूँ ‘जी’ तिनका-तिनका जोड़ती हूँ पर बचा कुछ नहीं पाती | कोई काम वाली नहीं रखी | फिर भी पैसे सारे रसोई और बच्चों की स्कूल और ट्यूशन फ़ीस में ही दम तोड़ देते है |” कह चल दी रसोई की ओर
“सुनती हो, एक अकेला कन्धा बोझ नहीं उठा पा रहा | दूसरा कन्धा .. ? शायद आसानी हो फिर |” आस भरी निगाह उठ गयी थी |
दूसरी निगाह भी मुस्कान से खिल गयी |
कुछ महिने बाद ही आंखे फिर सपने बुनने लगी | घर का बजट अब मेट्रो की सी स्पीड से दौड़ रहा था |
— सविता मिश्रा
सविता जी , लघु कथा अच्छी है जिस में आप ने मैह्न्घाई की मार झेल रहे अवाम की तकलीफें बताई हैं लेकिन कुछ हम आप भी अपनी सहैता कर सकते हैं जैसे घर में कुछ ऐसी सब्ज़िआन उगा सकते हैं जिस में आप को ज़िआदा मुशाक्त भी नहीं करनी पड़ेगी मसलिन दो गमलों में दो बूटे मिर्चों के लगा लो , आप से इतनी मिर्चें खा नहीं होंगी जितनी पैदा हो जायेगी , यह गमले घर की छत पर रख लो . एक में शिमला मिर्च का एक ही पैदा लगा लो , दुसरे में एक बैंगन का लगा लो , तीसरे में एक टमाटर का बूटा लगा लो . यह सिर्फ उधाहरण ही दे रहा हूँ . भारत का क्लाइमेट इतना अच्छा है कि कुछ भी उगा लो उग जाएगा . आप हैरान होंगी कि यहाँ का मौसम दुनीआं में सब मुल्कों से बुरा है , फिर भी लोग शौक से ही इतना कुछ लगाते हैं कि आप हैरान हो जायेंगी . यहाँ सब्जी इतनी मैह्न्घी नहीं है फिर भी इस्त्रीआन और नहीं तो पुदना धनिआन पालक तो लगाएगी ही . हम इंडिया से ही आए हैं लेकिन अंग्रेजों ने हमें भी सिखा दिया . इंडिया के लोगों में इतनी चुस्ती नहीं कि यह मामूली सी बात को भी कर सकें . और बात कहूँ इंडिया में मेरे ही भाई के पास बहुत जमीन है लेकिन सब्जी दूकान से लेते हैं . अगर हर घर अपनी सब्जी आप प्रोड़ूस करने लगे तो बजट की स्केल का एक साइड ऊंचा हो सकता है .
लघुकथा अच्छी है, पर इसका अंत स्पष्ट नहीं है. बहुत कुछ पाठक की कल्पना पर छोड़ दिया गया है.