दर्द,अश्क,जख्म
समुद्र पहाड़
और सफीनो को
अपने स्याह दामन में
छुपाये बैठी हैं
बरसों बाद
खिज़ा का मिजाज़ और
मेरा हाले दिल
एक सा हैं
हमारा नगमा-ए-रंजोगम
और संगीत
एक सा हैं
छुपा हैं कोई
जलजला
इस घर की
बुनियाद में
उफ्फ ..!
आरजुओ की
कांपती लौ
लेकर
ए बाती
तुम कहाँ जाओगी …??
….रितु शर्मा ....
अच्छा भाव!
वाह वाह , बहुत खूब .