मैं
मैं समाज और संसार के
बीच की वो धुरी हूँ
जो प्रकृति का सन्तुलन
बनाये रखने मैं समर्थ है
मैं सिफ ज़रूरत नहीं
मैं जननी हूँ मैं उत्पत्ति हूँ
तुम्हारे चाहने- नहीं चाहने से
कूछ नहीं होगा
मैं हूँ ये तुम्हें मानना ही होगा
तुम जितना मेरा अस्तित्व
नकारोगे उतना ही
मेरी ज़रूरत महसूस करोगे
तुम नियम भूल सकते हो
पर नियति को नहीं
बहुत बढिया .
वाह वाह !
बहुत बढ़िया !