यशोदानंदन-२४
चोर कहलाना कोई पसंद नहीं करता, लेकिन कान्हा अपने लिए ‘माखनचोर’ का संबोधन सुनकर भी मुस्कुराते रहते थे। मातु यशोदा उन्हें कई नामों से पुकारती थीं। कभी उन्हें कान्हा कहतीं, कभी कन्हैया; कभी लड्डू गोपाल, तो कभी श्यामसुन्दर। परन्तु गोकुल की गोपियां उन्हें ‘माखनचोर’ ही कहतीं। कहें भी क्यों नहीं? उन्होंने स्वयं अपनी आँखों से नटखट कान्हा को अपने घरों से माखन चुराते हुए देखा जो था।
मातु यशोदा श्रीकृष्ण के लिए तरह-तरह के पकवान और व्यंजन बनाती थीं। गोद में बैठाकर उन्हें जिमाती थीं। दो कौर खाने के बाद श्रीकृष्ण भाग जाते थे। मैया उन्हें फिर पकड़तीं और समझातीं –
“कान्हा, अगर तू भरपेट भोजन नहीं करेगा, तो हृष्ट-पुष्ट कैसे होगा, मजबूत कैसे बनेगा और बड़ा कैसे होगा? भोजन करते समय नहीं खेलते। पहले भोजन कर ले, फिर खेलना।”
चपल कान्हा उत्तर देते – “माँ, तू मुझ नित्य ही मेवा, पकवान खिलाती है। अब ये मुझे बिल्कुल भी अच्छे नहीं लगते। मुझे माखन बहुत अच्छा लगता है और तुम मुझे माखन खिलाती ही नहीं।”
श्याम की माखनप्रियता की बात एक व्रज युवती मैया के पीछे खड़ी होकर सुन रही थी। उसके हृदय में अनायास भाव उमड़ने लगे – काश! कान्हा मेरे घर आकर माखन खाता। यह श्याम मेरी दूध-दही की मथनियों के बीच माखन चुराने के लिए बैठता और मैं कहीं ओट में छिपकर इसे माखन खाते हुए देखती। अपने नन्हें कोमल हाथों से माखन खाते हुए और मुख में माखन लपेटे कान्हा को देखना कितना आह्लादकारी होता!
श्रीकृष्ण ने गोपी के हृदय की भाषा उसकी आँखों में पढ़ ली। मैया की नजर बचाकर कुछ ही देर बाद गोपी के यहां पहुंच गए। श्रीकृष्ण को आते देख गोपी स्वयं छिप गई। कान्हा सूने घर में मथनियों के पास चुप साधकर बैठ गए और मटकी से माखन निकालकर खाने लगे। कुछ खाया, कुछ मुंह में लगाया और कुछ भूमि पर गिराया। इस बीच मणिमय स्तंभ में उन्हें अपना प्रतिबिंब दिखाई पड़ा। वे उसे दूसरा बालक समझ बैठे। उन्हें लगा कि उनकी चोरी पकड़ी गई। चतुरतापूर्वक अपनी चोरी छिपाते हुए कहने लगे –
“देखो भाई! आज मैं पहली बार चोरी-चोरी माखन खाने आया हूँ। लगता है तू भी इसी प्रयोजन से यहां आया है। हमारा तुम्हारा अच्छा साथ बनेगा। आजा, दोनों मिलकर माखन खाते हैं।”
अपने नन्हे कर-कमलों में मटकी से माखन निकाल कान्हा अपने प्रतिबिंब को भी खिलाने लगे। श्याम के माखन खाते हुए मनमोहक रूप और वाक्चातुरी देख गोपी आनन्दातिरेक से भर गई। भावावेश में स्वयं को रोक नहीं सकी। हंसते हुए कान्हा के सामने आ गई और छाती से चिपकाने के लिए हाथ बढ़ा दिया। श्रीकृष्ण को पकड़े जाने का भय सताने लगा। पलक झपकते वे घर से बाहर हो गए।
गोपी ने मैया से कोई शिकायत नहीं की। बस, अपनी सखियों से इस लीला का वर्णन किया। श्रीकृष्ण की रूप माधुरी और प्रेम में अभिभूत प्रत्येक गोपी के हृदय में माखन चोर कान्हा को देखने की प्रबल अभिलाषा जागृत हो उठी। कान्हा भी कहां पीछे रहनेवाले थे? अब वे अपनी माखन चोर मंडली के साथ नित्य ही गोपियों के घर पर धावा बोलने लगे। आरंभ में तो गोपियां कन्हैया को मन-मर्जी से माखन खाते, मुख पर दही लपेट लेने के दृश्य को परम आह्लाद से चुप-शान्त होकर देखतीं और उस अद्भुत रूप-माधुरी से मन की तपन बुझातीं, परन्तु धीरे-धीरे बालमंडली ने इसे अपना नित्य का कार्य बना लिया, तो चिन्तित हो उठीं। श्रीकृष्ण और उनके सखा न सिर्फ माखन खाते थे, बल्कि मटकियां भी तोड़ देते थे। संभवतः कंस को गोरस की आपूर्ति बाधित करने के उद्देश्य से श्रीकृष्ण सप्रयास यह कार्य करते थे। मथुरा के राजप्रासाद और सैनिकों को गोरस की आपूर्ति गोकुल से ही होती थी।
रोज-रोज की माखन चोरी से तंग आकर गोपियों ने मातु यशोदा से श्रीकृष्ण की शिकायत करने का निर्णय लिया। वे समूह में मैया के पास पहुंचीं और कान्हा की शिकायत लगाई –
“हे यशोदा! हम तुम्हारा बहुत मान-सम्मान और लिहाज करती हैं, पर इसकी भी एक सीमा है। हम ग्वालन हैं, दूध, दही और माखन बेचकर ही अपना गुजारा करती हैं, पर रोज-रोज दूध-दही की बर्बादी अब सहने योग्य नहीं है। तुम्हारा यह लाडला कान्हा, चोरी से हमारे घर आकर स्वयं तो गोरस खाता ही है, अपने साथ पूरे गोकुल के मित्रों को भी खिलाता है। अब तो इसने हद कर दी है। जाते-जाते इसकी बालमंडली सारी मटकियां भी तोड़ देती हैं।”
एक गोपी ने सामने आकर हाथ नचाते हुए कहना आरंभ किया –
“लो, तुम्हें मैं आज की ही घटना बताती हूँ – आज मैंने अपने घर के एक कोने में ताजा माखन छिपाकर रखा हुआ था, पर तेरे इस नटखट छोरे ने तुरन्त पहचान लिया और आ गया घर में। मैंने जब पूछा कि तुम यहां क्यों आये हो, तो बड़े विश्वास के साथ निस्संकोच बोला – मैं अपने घर में आया हूँ। तू मेरे घर क्या कर रही है? जब मैंने पूछा कि यह तो बता कि इस मटकी में हाथ क्यों डाल रखा है, तो जानती हो उसने क्या कहा – मैं माखन थोड़े ही खा रहा हूँ, मैं तो तेरे गोरस में पड़ी चीटियां निकाल रहा हूँ।”
मातु यशोदा ने श्रीकृष्ण को पकड़कर गोपियों के सामने खड़ा कर दिया और डांटना शुरु किया –
“कान्हा, तेरे घर में किस चीज की कमी है, जो तू चोरी करता है। तू जितना भी माखन खाना चाहे या अपने सखाओं को खिलाना चाहे, मैं तुन्हें दूंगी, पर इन गोपियों के घर माखन चुराने मत जाया कर। इनकी नित्य की शिकायतें सुन मेरा मन पक गया है। तू मुझे बिरादरी में सम्मान के साथ रहने देगा या नहीं? सभी तुझे माखनचोर कहती हैं। तू भले ही यह संबोधन सुन मुस्कुराता रहता है, लेकिन मैं तो लाज से गड़ जाती हूँ न। हे मेरे प्यारे मोहन! तू और कहीं खेलने मत जाया कर। मेरी ही आँखों के सामने खेलता रह। मैं तेरी बलिहारी जाती हूँ। तू अपने अन्य संगी-साथियों को भी यहीं बुला ले। तू मेरी आँखों से एक पल के लिए भी ओझल मत हो। मैं तेरे और तेरे सखाओं के लिए मधु, मेवा, पकवान, मिठाई, माखन, दही, खट्टे, मीठे, खारे – सभी प्रकार के भोज्य पदार्थों की व्यवस्था कर दूंगी। तू बाहर जाकर गोपियों के माखन मत चुराया कर।”
श्रीकृष्ण ने बड़े भोलेपन से उत्तर दिया –
“मैया! मेरी प्यारी मैया! सच मानना मैंने माखन नहीं चुराया है। तू ही बता, छींके कितने ऊंचे बंधे रहते हैं? मेरे हाथ और पैर इतने छोटे-छोटे हैं। मैं इन्हें कैसे पा सकता हूँ? मुझे चोर साबित करने के लिए ये गोपियां बलपूर्वक मेरे मुंह में दधि लपेट देती हैं और पकड़कर शिकायत करती हुई तुम्हारे पास ले आती हैं। पता नहीं, मेरे साथ ये किस जन्म की शत्रुता निभा रही हैं?”
आँखों में आंसू भरकर कान्हा माता की छाती से चिपक जाते और जोर-जोर से रोने का अभिनय करते। मातु यशोदा का क्रोध गोपियों पर फूट पड़ता। प्रतिक्रिया स्वरूप वे कहतीं –
“पता नहीं कैसा समय आ गया है कि व्रज के निवासी भी अब झूठ बोलने लगे हैं – कहते हैं – कृष्ण चोरी करता है। अरे, अभी मेरा कान्हा पांच वर्ष और कुछ ही दिन का हुआ है। इसके इतने छोटे-छोटे हाथ तुम्हारे ऊंचे-ऊंचे छीकों तक कैसे पहुंच सकते हैं? क्या यह चोर है? मेरा कान्हा कभी झूठ नहीं बोलता। तुम सभी शिकायत के बहाने मेरे श्यामसुन्दर को देखने आती हो, पर क्या इस प्रकार मेरे निर्दोष लाल पर दोष लगाकर दैव की मार से बच पाओगी?
मातु यशोदा अपने लाडले को प्यार करने लगतीं और गोपियां अपने-अपने घरों को लौट जातीं।
कृष्ण की बाल लीलाओं का रोचक विवरण !