क्षणिका

क्षणिकाएं

1.
रंजिश थी तुम को
ख़ुद से
निशाना था कोई
और
तुम ख़ुद ना ख़ुद के
हो सके
ज़माना तो ग़ैर था
2.
नौ महीने जिसने
जिस्म
तुम्हारा ढोया था
नौ मिनट उसको
तुम कांधा ना दे सके
3.
छलनी देश तेरा
दुश्मन
कर गया ।
लानत है तुझ पे
ओ मेरी
माँ के लाड़ले
4.
लो ज़िन्दगी अब
हक़
वतन कर चलो
वो मौत भी क्या
मौत है
चर्चा शहर में ना हो

One thought on “क्षणिकाएं

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कवितायेँ.

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