गांव
अक्सर ख्वाब में
घर का कुवाँ नजर आता है
आजकल मुझे
मेरा गांव याद बहुत आता है
याद आतें हैँ
खेत खलिहान औ चौबारा
बरसों बीत गये
जहाँ पहुँच न पाये दुबारा
याद आता है
बरगद का वो पेड़
जहाँ हम छहाँते थे
कैसे भूल पाऊँ
हाय वो पोखरिया
जिसमें हम नहाते थे
नहर की तेज धार का
वो बहता पानी
आज बहुत याद आया
डूबते खेलते बहते
नहर की वो लहर
जिसने तैरना सिखाया
वो छडी वो डन्डे
आज सब याद आतें हैं
खत्म हो रहा जिन्दगी का सफर
मुझे मेरे वो मास्टर जी
दिल से आज भी भाते हैं
अक्सर ख्वाब में
घर का कुवाँ नजर आता है
आजकल मुझे
मेरा गांव याद बहुत आता है
घर का कुवाँ नजर आता है
आजकल मुझे
मेरा गांव याद बहुत आता है
याद आतें हैँ
खेत खलिहान औ चौबारा
बरसों बीत गये
जहाँ पहुँच न पाये दुबारा
याद आता है
बरगद का वो पेड़
जहाँ हम छहाँते थे
कैसे भूल पाऊँ
हाय वो पोखरिया
जिसमें हम नहाते थे
नहर की तेज धार का
वो बहता पानी
आज बहुत याद आया
डूबते खेलते बहते
नहर की वो लहर
जिसने तैरना सिखाया
वो छडी वो डन्डे
आज सब याद आतें हैं
खत्म हो रहा जिन्दगी का सफर
मुझे मेरे वो मास्टर जी
दिल से आज भी भाते हैं
अक्सर ख्वाब में
घर का कुवाँ नजर आता है
आजकल मुझे
मेरा गांव याद बहुत आता है
बहुत अच्छी कविता. मुझे भी अपना गाँव हर समय याद आता रहता है.
अच्छी कविता , मैं भी अपने गाँव पौहंच गिया , गाँव बस गाँव ही है.
आपकी कविता बहुत अच्छी लगी। आपने गांव का स्वाभाविक चित्रण किया है जिसके शब्द वा विषय-वस्तु ह्रदय को छूते हैं। बधाई।