कविता

गांव

अक्सर ख्वाब में
घर का कुवाँ नजर आता है
आजकल मुझे
मेरा गांव याद बहुत आता है
याद आतें हैँ
खेत खलिहान औ चौबारा
बरसों बीत गये
जहाँ पहुँच न पाये दुबारा
याद आता है
बरगद का वो पेड़
जहाँ हम छहाँते थे
कैसे भूल पाऊँ
हाय वो पोखरिया
जिसमें हम नहाते थे
नहर की तेज धार का
वो बहता पानी
आज बहुत याद आया
डूबते खेलते बहते
नहर की वो लहर
जिसने तैरना सिखाया
वो छडी वो डन्डे
आज सब याद आतें हैं
खत्म हो रहा जिन्दगी का सफर
मुझे मेरे वो मास्टर जी
दिल से आज भी भाते हैं
अक्सर ख्वाब में
घर का कुवाँ नजर आता है
आजकल मुझे
मेरा गांव याद बहुत आता है

सूर्य प्रकाश मिश्र

स्थान - गोरखपुर प्रकाशित रचनाएँ --रचनाकार ,पुष्प वाटिका मासिक पत्रिका आदि पत्रिकाओं में कविताएँ और लेख प्रकाशित लिखना खुद को सुकून देना जैसा है l भावनाएं बेबस करती हैं लिखने को !! संपर्क [email protected]

3 thoughts on “गांव

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कविता. मुझे भी अपना गाँव हर समय याद आता रहता है.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    अच्छी कविता , मैं भी अपने गाँव पौहंच गिया , गाँव बस गाँव ही है.

  • Man Mohan Kumar Arya

    आपकी कविता बहुत अच्छी लगी। आपने गांव का स्वाभाविक चित्रण किया है जिसके शब्द वा विषय-वस्तु ह्रदय को छूते हैं। बधाई।

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