दर्द की गठरी
हां
मैने सोचा था कि
फिर आऊंगी लौटकर तुम्हारे पास
कुछ नए दर्द लेकर …. !!
पर जब तक जुदा रही तुमसे
बहुत से दर्द
गहरे अंतस तक उतर आए,..
औरजब तुमसे मिलने
आने के लिए बांधने लगी,
“दर्द की गठरी”
तो मैं समझ ही न पाई,
वो नए दर्द कौन से है ?
जो तुमसे बांटने हैं,
क्योंकि
तब से अब तक का
हर दर्द ताजा था….
एक लंबे अरसे बाद भी
जब हम मिले थे तब से,..
जब हम जुदा हुए थे,..
या यू कहूं
हम जुदा किए गए थे,..
तब तक का हर दर्द ताजा था…
मेरे सारे अहसास और सपनें भी
अब तक वैसे ही ताज़ा हैं
बस कुछ बदला है मुझमें
तो वो है मेरे बालों की सफेदी
आंखो के काले घेरे,पैरों में रूढ़ियों की बेड़ियां
हाथों में रेत की तरह फिसलता वक्त
पर आज भी
मेरे अहसासों और सपनों को मिला
हर दर्द ताजा है
मैने कहा था ना
लो मैं आ गई लौटकर तुम्हारे पास
अपने सारे दर्द लेकर …. !!
……प्रीति सुराना
बहुत अच्छी कविता .
thanks
बहुत खूब !
thanks