घर…
थक के चूर
जब भी होता हूँ कभी
तेरी यादों की दीवारों से
लगके सो जाता हूँ मैं..!
अहसासों के झरोखों से
घूमती तेरी खुशबु
तेरे होने का एहसास कराती मुझको
कोई झरोखा न लगाया मैंने..!!
कोई आंधी कोई तूफान
कई बरसात की रातें
तेरे आँचल की छत के तले गुजारी मैंने..!!!
तकती आँखें कही मुंद न जाएँ
बंद ख्यालों के पीछे
तेरे इंतज़ार में
कोई दरवाजा न लगाया मैंने
वाह…
क्या खूब घर बनाया मैंने ….!!!!
वाह वाह !