यथार्थ…
भागती है दूर परछाई मेरी मुझसे
चाहता हूँ
पकड़ना जब भी उसे
बोली मुझसे एक दिन –
काम हो,
तुम्हे छू नहीं सकती .
क्रोध हो,
तुझे सह नहीं सकती .
लोभ हो,
तुम्हे पा नहीं सकती .
मोह हो,
तुम्हे अपना नहीं सकती .
तुम आदमी हो,
तुझे मैं जी नहीं सकती ……
वाह वाह !