कविता

यथार्थ…

भागती है दूर परछाई मेरी मुझसे

चाहता हूँ
पकड़ना जब भी उसे

बोली मुझसे एक दिन –

काम हो,
तुम्हे छू नहीं सकती .

क्रोध हो,
तुझे सह नहीं सकती .

लोभ हो,
तुम्हे पा नहीं सकती .

मोह हो,
तुम्हे अपना नहीं सकती .

तुम आदमी हो,
तुझे मैं जी नहीं सकती ……

सूर्य प्रकाश मिश्र

स्थान - गोरखपुर प्रकाशित रचनाएँ --रचनाकार ,पुष्प वाटिका मासिक पत्रिका आदि पत्रिकाओं में कविताएँ और लेख प्रकाशित लिखना खुद को सुकून देना जैसा है l भावनाएं बेबस करती हैं लिखने को !! संपर्क [email protected]

One thought on “यथार्थ…

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह !

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