इक एहसास……….!!!!!!!
तुम तसव्वुर में हो तस्सव्वुर की तरह,
देख के तुम्हें निहाल है तसव्वुर की तरह….!
तेरा वो ख़त लिखना, लिफाफे में बंद करना,
याद आता है तस्सव्वुर में वो कोरों का भीगना..!!
बिन पढ़े ही तेरा ख़त मैं पढ़ ही लेता हूँ,
वो ज़ज्बात तूने लिखे जो जज्बातों के तस्सव्वुर में…!!!
सोचते हैं कि अब तुमने नाम लिफाफे पर लिख दिया होगा,
नजर आते हैं वो भीगते अक्षर मेरे ख्यालों के तस्सव्वुर में….!!!!
मेरे सामने ज़माने की सूनी पगडण्डी दौड़ जाती है,
तुम्हारी सूनी मांग नज़र आती है हर तस्सव्वुर में ….!!!!!
फलसफा मुहब्बत का है मुझे नहीं मालूम,
जी लेता हूँ जिंदगी तेरे ख्यालों तस्सव्वुर में….!!!!!!
एक आरजू बस इतनी सी
कि बंद न करना तू ख़त लिखना,
हर “ऋतु” मैं जी लेता हूँ
तेरे ख़त के तस्सव्वुर में…..!!!!!!
प्रकाश
बढ़िया !