निकसौ न नंदलाल
मींडि दिए गाल कान्ह, हाथन भरे गुलाल |
नैन भरे दोऊ, गुलाल और नंदलाल |
सखि किये जतन, गुलाल तौ निकसि गयो |
कज़रारे नैन दुरियो, निकसो न नंदलाल ||
कारे कारे नैन छुपे, कारे कारे नंदलाल |
लाज शरम हिये भये गोरी के नैन लाल |
भाव भरे असुंअन की राह ढरि गयो गुलाल |
एसो ढीठ जसुमति कौ, निकसो न नंदलाल ||
एरी सखि ! बंद करूं, खोलूँ या पलक झपूं |
निकसे निकासे ते न, आँखि ते गोपाल लाल |
जानै बसौ हिये जानै चित में समाय गयो |
करि करि जतन हारी, निकसो न नंदलाल ||
निकसे निकासे ते न, राधे नैन भये लाल |
लाल लाल नैनन में कैसे छुपे नंदलाल |
नैन ते निकसि गयो, उर में बसो है जाय |
राधे कहैं मुसुकाय, निकसौ न नदलाल ||
मधुर कविता. ब्रजभाषा का माधुर्य इसमें प्रकट है.
बहुत अच्छी छंद -बद्ध रचना! आपकी विद्वता की तारीफ करता हूँ.