शहीदों की आड़ में दूरगामी राजनीति
इस बार 23 मार्च 2015 का दिन देश की राजनीति में कुछ नये प्रकार के रंग दिखलाई पड़े। महान क्रांतिकारी व देशभक्त तथा अंग्रेजी शासन के खिलाफ आवाज बुलंद करके फांसी के फंदे को चूमने वाले शहीद भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरू की याद में निश्चय ही एक मेला सा लग गया। बहुत दिनों के बाद देश को एक ऐसा प्रधानमंत्री मिला है जिसने पंजाब के हुसैनीवाला में राष्ट्रीय शहीदी स्मारक में पहुॅचकर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को श्रद्धांजलि दी और पंजाबी वेशभूषा धारण करके पंजाब की जनता के साथ ही साथ देशभर के किसानों को राजनैतिक संदेश भी दे डाला।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण से एक तीर से कई निशाने साधे। उन्होनें युवाओं कोे भी संदेश दिया, किासानों को भी दिया और पंजाब की जनता को भी जहां अगले कुछ समय बाद विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। इस अवसर पर पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा करके भाजपा-शिरोमणि अकाली दल गठबंधन के बीच किसी प्रकार के आपसी तनाव को सिरे से खारिज करने का सफल प्रयास करके दिखाया है।
वहीं दूसरी ओर ऐसा पहली बार हुआ है जब शहीदों की याद में टी. वी. चैनलों में भरपूर सामग्री परोसी गयी और जनता ने चाव के साथ उसे देखा भी है। सोशल मीडिया व टिवटर में भी शहीदों की याद में होड़ में लगी रही। पूरे देश व प्रदेश भर से जिस प्रकार से समाचार प्राप्त हो रहे हैं उससे साफ पता चलता है कि आज का युवा गांधी जी की तुलना में भगत सिंह सरीखे क्रांतिकारियों के विचारों से अधिक प्रभावित हो रहा है। कई स्थानों संगोष्ठियों का आयोजन किया गया जिसमें युवाओं की अच्छी खासी संख्या उपस्थित रही। जिससे युवाओं में शहीदों के प्रति जिज्ञासा व प्रेम का पता चलता है। आज का युवा शहीदों के बारे में अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहता है। यह आज की महती आवश्यकता है कि अब आज के युवाओं व भावी पीढियों को देश के स्वतंत्रता संग्राम व इतिहास की बारीक से बारीक जानकारी दी जाये।
लेकिन शहीदों की याद में अबकी बार राजनीति भी खूब की गयी है। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में भूमि अधिग्रहण बिल पर अपनी सरकार का पक्ष रखा।पंजाब की धरती से किसानों के लिए पूरे देश को संदेश दिया। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में शहीदों को नमन कया। उन्होनें पंजाब की वीर माताओं को भी नमन किया। तीस वर्षो के बाद कोई प्रधानमंत्री हुसैनीवाला में गया जहां पर पीएम ने पंजाब के लोगों पर अपना कर्ज उतारने के लिए कहा कि अब समय आ गया है कि मैं पंजाब के लोगों का कर्ज उतारूं इसलिए उन्होनें भगत सिंह के नाम पर हार्टिकल्चर यूनिवर्सिटी बनाने की भी घोषणा की। साथ ही पंजाब के किसानों के दर्द को समझते हुए उन्होनें 60 वर्ष के ऊपर की आयु के किसानों को 5 हजार रूपये मासिक पेंशन देने का भी ऐलान कर दिया।
इस अवसर पर उन्होनें कांग्रेस व पूर्ववर्ती सरकारों पर जमकर निशाना साधा और कहा कि आजादी के जिन दीवानों ने अपनी जान की आहुति दी उनको हमारी बीती सरकारों ने दरकिनार करने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ी। प्रधानमंत्री मोदी ने इस अवसर पर एक बार फिर शहीदों के सपनों का भारत बनाने का संकल्प लिया। उन्होनें 2019 तक देश की स्वच्छता का सपना पूरा करने का वायदा किया।
वहीं दूसरी ओर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल व उनके सहयोगियों ने भी शहीदों को याद किया। दिल्ली विधानसभा में शहीदों की प्रतिमा लगवाने कीबात कही। वहीं दूसरी ओर समाजसेवी अन्ना हजारे ने भी शहीदों की याद में अपने तथाकथित राजनैतिक आंसू टपका दिये हैं। एक ओर जहां प्रधानमंत्री मोदी हुसैनीवाला में शहीदों का नमन कर रहे थे वहीं दूसरी ओर पंजाब के ही खटकड़कलां में शहीदों की याद में मोदी व सरकार के खिलाफ अपनी भड़ास निकाल रहे थे।
23 मार्च को ही अन्ना हजारेे ने भूमि अधिग्रहण के खिलाफ मार्च की शुरूआत की है। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है कि जहां पीएम मोदी की जनसभा में भीड़ आई हुई थीं वहीं किसानों के मुददे पर मोदी सरकार को घेरने का प्रयास कर रहे अन्ना हजारे के मार्च में केवल दो दर्जन लोग ही शामिल थे। जबकि कांग्रेस ने प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा को महज राजनैतिक स्वर्थ की यात्रा करार दिया है और उनका मजाक बनाया है।
आज देश की राजनीति में यह बहुत अच्छी बात हो गयी है लगभग सभी ने किसी न किसी बहाने शहीदों को याद तो किया है। नहीं तो अभी तक तो सभी सरकारें केवल फूलमाला चढ़ाकर इतिश्री कर लेती हैं। आज देश के हालात निश्चय ही बेहद चिंतनीय है। बेमौसम बरसात के कारण किसानों की फसलें बर्बाद हो चुकी हैं। किसानों में आत्महत्या करने की होड़ मची है लेकिन देश के राजनैतिक दल अपने स्वार्थेां की पूर्ति में लग गये हैं। इस अवसर पर उप्र की समाजवादी सरकार ने भगत सिंह व अन्य शहीदों को प्राथमिकता न देकर समाजवादी लोहिया को प्राथमिकता दी और अपने आप को किसानों का परम हितैषी बताया लेकिन हालात ऐसे हैं कि आज सबसे कठिन दौर में उप्र का किसान है। उसकी सुध कोैन लेगा।
— मृत्युंजय दीक्षित
अच्छा लेख. शहीदों के नाम पर राजनीति नहीं, देशहित की बातें करनी चाहिए.
आजकल तो राजनीतिक व्यक्ति अगर मंदिर मस्जिद भी जाते हैं तो उसमे भी उनका स्वार्थ निहित होता है …अच्छी आलेख के लिए बधाई!