हास्य-व्यंग्य : मानव है तो बन्दर का ही वंशज …
बिहार में मैट्रिक परीक्षा में स्कूल भवन की दीवारों पर चढ़कर परीक्षार्थियों के अभिभावक, रिश्तेदार और सहयोगियों को अपने-अपने उम्मीदवारों को नकल कराते समाचार पत्रों में फोटो प्रकाशित और समाचार चैनलों में दिखाया गया है। मौसम परीक्षा का है। परीक्षा बच्चो की चल रही है। लेकिन रिजल्ट मम्मी पापा का आना है। परीक्षा का माहौल तनावपूर्ण लेकिन नियंतरण में है। बच्चो की कलम की घिसावट माँ के चेहरे पर लकीरें खींच देती है। बच्चो का बच्चों से कॉम्पटीसन कम, लेकिन माँ का पड़ोसन से ज्यादा है। बच्चो के बहाने मम्मियां मैदान में कूद पड़ती है। कम अंक आने पर माँ का मुहं लटक जाता है इस लटके हुए मुहं को देखकर ही कई बच्चे छत के पंखे से रस्सी बांधकर लटक जाते है पिछले सालों में बच्चो ने इतनी आत्महत्याएं कर डाली की सरकार भी सबको पास करने के लिय मजबूर हो गयी। नियम बना डाला कि कक्षा आठ तक कोई बच्चा फेल नहीं किया जायेगा।
परीक्षा पैटर्न बदलने का कारण आत्महत्याएं बताई जा रही है लेकिन शक की सुई अमेरिका की तरफ जा रही है। उनका अंकल सैम जब भारत आया था तो यह कहकर आया था की मै भारत जा रहा हूँ और १४ लाख नोकरी लेकर आऊंगा जैसे यहाँ भारत में बेरोजगारों की कमी हो ? उसने अमेरिकी बच्चो को संबोधित करते हुए कहा था कि हे अमेरिकियों तुम यदि नहीं पढोगे तो भारतीय बच्चे आ जायेंगे। यह चेतावनी बिलकुल वैसी है जैसी भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को दी थी कि तू जीतेगा तो राज्य भोगेगा और मरेगा तो वीर गति को प्राप्त होगा। अंकल सैम और उनके भारतीय कारिंदों ने तो परीक्षा पैटर्न ही चेंज कराया था लेकिन हमारे तो कई मुख्यमंत्री बड़े महान हुए है। बिहार के एक स्कूल में नक़ल का दृश्य बड़ा भयंकर दिखाया गया है जिसमे कुछ रिश्तेदार अपने वारिसों को नक़ल करने के लिए चार चार मंजिल भवन की दीवार पर चढ़े हुए दिखाई दे रहे है।
निश्चित ही अपनी जान को जोखिम में डालकर नक़ल की पर्चिया पहुचाई जा रही थी। यह देखकर एक भूतपूर्व मुख्यमंत्री का कोमल मन बोल उठा कि मेरी सरकार में नक़ल की पूरी छूट थी। हम तो परीक्षा में किताब ही दिलवा दिया करते थे। जब किसी राज नाथ ने नक़ल नहीं होने दी थी और छात्रो पर सख्ती कर दी गयी थी तो मुलायम सिंह नक़ल अवतार के रूप में सामने आये थे। भला कोई सख्ती रखकर आज तक राज कर पाया है ? प्रजा ढील चाहती है। जनता खुली छूट चाहती है।
नक़ल अध्यादेश ने उत्तर प्रदेश की राजनीती ही बदल दी थी। नक़ल रोकने वाली पार्टी हार गयी थी। इससे सिद्ध हो गया था कि हम जनमजात ही नकलची है। नक़ल विरोधी अध्यादेश ने जब कल्याण का अकल्याण कर दिया था। तब मेरा खोजी मन खोजी कुत्ते की तरह स्वान निद्रा से जाग उठा। बोर्ड की परीक्षा के लिए मुलायम रुख क्यों अख्तियार किया गया ? यह जानने के लिए मेरे मन का मयूर शास्त्रों की अटारी पर जा बैठा। तब जाकर पता चला कि दोयम दर्जे की किताब में जो कविता है। वह नक़ल कि जननी है। उस नकली कविता को याद दिल दूँ जिसका मुखोटा है पर्वत कहता शीश उठकर तुम भी नचे बन जाओ, सागर कहता लहराकर मन में गहराई लाओ। आप ही बताओ की ढाई फुट के बच्चो को 8844 मीटर ऊँचे एवरेस्ट पर चढ़ा दिया जाता है। असलियत में तो माँ बाप के अरमान एवरेस्ट से भी ऊँचे है। जब कंचन जंघा जैसे अरमान पुरे नहीं होते तो बच्चे मन में गहराई ले आते है। वे बच्चे प्रशांत महासागर की पांच मील गहराई में समां कर शांत हो जाते है।
नक़ल बच्चो को आत्महत्या से बचाती है। माँ को पड़ोसन द्वारा होने वाले चीयर हरण से बचाती है। हमारे समाजशास्त्र की नीव नक़ल आधारित है। साइंस एंड टेक्नोलॉजी का प्रसार भी नक़ल से ही होता है। नक़ल कर कर हमने सुई से विमान तक बना डाले है। दवा से लेकर दारु तक नकली बना डाली। देश की आधी दुकाने नकली सामान से अटी पड़ी है। बेचारे असली उत्पादकों को तो अपने माल पर लिखना पड़ता है कि नक्कालों से सावधान। वक्त की विडंबना तो यह है की जिस वस्तु पर लिखा होता है की नक्कालों से सावधान, लोग उसी को लेते है। नक़ल में मानव को महारथ हासिल है आखिर मानव है तो बन्दर का ही वंशज। बन्दर और बेचारा कर ही क्या सकता है ? उसे तो नक़ल के शिवाय कुछ नहीं आता है। हमने जितनी चीजें सीखी है नक़ल करके ही सीखी है।
— डॉ रजनीश त्यागी
करारा व्यंग्य !
बढ़िया व्यंग्य है