मेरे ज़ज्बों को हाँसिल है… तुम्हारी सांस काफी है
मेरे ज़ज्बों को हाँसिल है… तुम्हारी सांस काफी है
महज़ अश्कों से बुझती है यक़ीनन प्यास काफी है
ज़माने भर की खुशियों से सुकूं हांसिल नहीं होता
…..तुम्हारा मेरे होने का, महज़ एहसास काफी है
न होना तुम मेरी जाना, मगर कहना नहीं मुझसे
कभी तुम पास आओगी, महज़ ये आस काफी है
भरी महफ़िल में आँखें ढूंढती हैं क्योँ तेरे सा कुछ
समझतीं है अभी तक ये तुम्हें कुछ खास काफी है
चले जाना, ज़रा ठहरो, सुनो तो दिल की मेरे भी
तुम्हारा हो ना पाया पर ये तुम्हारे पास काफी है
____________________अभिवृत
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल !