राजनीति

सोशल मीडिया को आजादी कितनी सही कितनी गलत ?

24 मार्च 2014 का दिन भारत में सोशल मीडिया के इतिहास में एक अभूतपूर्व व ऐतिहासिक दिन के रूप में याद किया जायेगा। सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में आई टी एक्ट की धारा 66ए को असंवैधानिक करार देते हुए उसे रदद कर दिया है। अदालत के इस फैसले के बाद सोशल मीडिया का बेतहाशा उपयोग में लाने वाले लोग इस प्रकार से खुशी मना रहे हैं जैसे कि उन्हें एक नयी आजादी मिल गयी हो।सोशल मीडिया में अदालत के इस फैसले के बाद लोग अपने- अपने तरीके से खुशी का इजहार कर रहे हैं। वहीं कुछ लोग दबे पांव शंका व खतरों की भी बात कर रहे हैं। सोशल साइटस पर कुछ भी लिखना अब अपराध नहीं हैं और तत्काल गिरफ्तारी भी नहीं की जा सकेगी। लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तो अवश्य होनी चाहिए लेकिन कहीं इसका दुरूपयोग न होने लग जाये इस पर भी ध्यान देने की महती आवश्यकता है। लोकतंत्र में व सोशल मीडिया के जमाने में सभी को अपनी बात कहने, लिखने का अधिकार होना अच्छी बात है लेकिन ऐसा भी नहीं होना चाहिए किसी की धार्मिक, सामाजिक भावना आहत हो या फिर निजता का उल्लंघन हो।

सोशल मीडिया एक दुधारी तलवार है। आज के जमाने में देशद्रोही ताकतेें, आतंकवादी संगठन व विशेषकर आईएस जैसे आतंकी संगठन भी खुलकर सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं। सोशल मीडिया का अश्लीलता व ठगी का ध्ंाधा करने में बेहतर इस्तेमाल हो रहा है। ऐसे कई प्रकरणव घटनाएं एक के बाद एक सामने आ रही हैं जिसमें महिलाओं के प्रति बढ़ते जघन्य से जघन्यतम वारदातों के पीछे कहीं न कहीं सोशल साइट्स के माध्यम से की जा रही मित्रता जिम्मेदार हैं। छात्राओं का अश्लील एमएमएस बनाना तो बायं हाथ का खेल होता जा रहा है। सोशल मीडिया को पूर्ण आजादी देते समय राष्टीयसुरक्षा व एकता को भी ध्यान में रखना पड़ेगा। कल को अगर जम्मू कश्मीर के अलगाववादी अपने ब्लाग व टिवटर के माध्यम से कश्मीर की जनता को भारत के खिलाफ भड़काने लग जायें तब क्या परिस्थितियां उत्पन्न होंगी चितनीय है। हालांकि अभी इस विषय के अंतर्गत एक प्रावधान है। लेकिन जब तक इस प्रकार के पोस्ट पर कार्यवाही होगी तब तक अलगाववादी अपने काम को अंजाम दे चुके होंगे। सोशल मीडिया में पहले से ही अश्लीलता व अश्लील शब्दों की भरमार हैं। अब और अधिक होने का खतरा और बढ़ जायेगा। नारी सम्मान की भावना पूरी तरह से समाप्त हो जायेगी। सोशल मीडिया में नारी केवल और केवल शारीरिक मनोरंजन की तरह प्रस्तुत की जा रही है। आखिर लिखने की कितनी आजादी चाहिए अपने विचारों को समाज के सामने रखने के लिए कितनी स्वतंत्रता चाहते हैं ?

लोकतंत्र में लिखने की स्वतंत्रता होनी चाहिए लेकिन साथ ही यह भी देखना चाहिए कि कहीं स्वतंत्रता की आड़ में सरकारों के कामकाज पर कोई बाधा न पड़ जाये। सरकार को रोज- रोज निर्णय न बदलने पड़ जायें। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस जे चेलमेश्वर,आर एफ नरीमन की पीठ ने याचिकाकर्ता श्रेया सिंघल की याचिका पर फैसला सुनाते समय कहा है कि, “धारा को समाप्त करना होगा क्योकि यह अभिव्यक्ति की आजादी पर लगने वाले मुनासिब प्रतिबंधों के आगे चली गई है। बहस, सलाह और भड़काने में अंतर है। बहस और सलाह लोगों को नाराज करती हो उन्हें रोका नहीं जा सकता। विचारों से फैले गुस्से को कानून व्यवस्था से जोड़कर नहीं देखा जाए।”

राजनैतिक रूप से यदि विचार किया जाये तो इस फैसले से भाजपा को कुछ सीमा तक लाभ प्राप्त हो सकता है। भाजपा सोशल मीडिया पर किसी भी प्रकार की पाबंदी के खिलाफ ही रही है। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी सोशल मीडिया का भरपूर उपयोग करते हैं तथा फेसबुक व ट्विटर पर उनको पसंद करने वाले लोगों की संख्या एक करोड़ से भी अधिक हो गयी है।

सोशल मीडिया पर लोगों का कहना है कि देश में अब सर्वोच्च अदालत ही सर्वाधिक माडर्न हो गयी है। कुछ लोग इस जीत का जश्न मनाने के साथ ही आतम अनुशासन बनाये रखने की सीख भी दे रहें हैं वहीं कुछ लोग उन्मुत्ता से सहमत भी नहीं हैं। सोशल मीडिया पर लोगों का कहना है कि अब वह खुलकर अपने मन की बात लिख सकते हैं, दूसरों को बता सकते हैं व पोल खोल सकते हैं । अब निडर व निर्भीक लोगों की सोच और बहादुरी पर कोई अंकुश नहीं पायेगा। लोगो का मत है कि हमें फ्री और आजाद इंटरनेट चाहिए । यहां पर दोहरे चरित्र वाले नेताओं की आवश्यकता नहीं है। उक्त धारा के समाप्त होने पर आईटी विशेषज्ञों का मत है कि एक्ट की इस धारा का दुरूप्योग बढ़ गया था।इसके तहत किसी पर टिप्प्णी करने के अलावा किसी व्यक्ति अथवा समूह पर अपनी टिप्प्णी करना या मन की बात कहना भी लोगों के लिए मुसीबत बन जाता था। खासकर नेता इस हथियार का अधिक दुरूपयोग करने लग गये थे। इस धारा का सर्वाधिक दुरूपयोग बंगाल, उप्र व महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्यों में देखने को मिल रहा था।

सोशल मीडिया का यूजर्स आज बहुत अधिक जीत का जश्न का मना रहा है क्योंकि उसे अब अपने दिल की हर बात लोगों के साथ खुलकर ष्करने की आजादी जो मिल गयी है। लेकिन कहीं यह आजादी देश व समाज के लिए नासूर न बन जाये इस बात का भी ध्यान रखना होगा।

मृत्युंजय दीक्षित

One thought on “सोशल मीडिया को आजादी कितनी सही कितनी गलत ?

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा लेख.

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